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बिल पार्ता नामक है, जिसे श्लोक की तरह मापात्रों प्रादि के प्रतिबन्ध रहित गद्य ही समझिए । उदाहरण इस प्रकार है -
"स्याम ताज कफनी कमंडलमै नीर । हाटी सुपेत सेष सुवरण शरीर ।।१४।। मोकल राबमातोदेषि माथाको नवायो। साई स्यां भुरानी सेष नामी पंथ पायो ।।१।। जंगल में चरे छी सो अध्याई झोटी पाई। मोकलका कनांसू सेष चीपीमें दुहाई ।।१३।। बोल्यो दूध पीकै सेष नीकी भाति रैणां ।
तेरे पुत्र होगा राव सेषा नॉव करणां ।।१७।। ___इसी कवि का अन्य ऐतिहासिक ग्रन्थ 'लावा रासा' है, जो राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, से प्रकाशित हमा है। उसमें भी दवावेत गद्य-छंद प्रयुक्त हैं । इसकी परवर्ती रचना कविराव बख्तावर के सं० १९३६ में रचित 'केहर प्रकाश' है। यह भी एक ऐतिहासिक काव्य है। बीच-बीच में वार्ता एवं वचनिका विशेष रूप से पाई जाती है। यहां उन दोनों का एक उदाहरण दिया जा रहा है। जवाहर वेश्या की पुत्री कंबलप्रसरण के रूप का वर्णन वार्ता में इस प्रकार किया गया है
"पुत्री जिणरे कंवलप्रसरण रूपरी निधान । सुकेशियासू सवाई साव रम्भारे समान ।। साहित्या शृंगार काव्य जबानी पर कहे। रमाताल परिजत संगीतमें रहे ।। वीगांधर सहजाई गाये किण भात । तराज पर नहें पावे नारद वीणारी सांत ।। जिणने सुण्या कोकिला मयूर लाज भाग जाये।
कुरंग पो भमंग बन पातालसू भावे ।।" . उसके रूप को देख कर अन्य मारियों ने उसे बाग-बगीचों में जाने का निषेध करते हुए क्या ही सुन्दर कहा है।
"सुघर जठे बोली या नवेली सहल सारे ही सिधाबज्यो । पण बाग बन सरोवर कदे भी मत जावज्यो। जाबेला बाग तो पिक शुक प्रली उड़ जावसी, ने बिम्बफल श्रीफल मनाङ सेवा जो सुखावसी, जावेला जो वन तो खञ्जन कपोत चोघ चूरेला । मणधर मृगराज गजराज बिवर बूरेला। जावेला सरोवर राज हंस बूड जावसी । कंवल काला पड़ेला सिवाल प्रवटावणे पावसी । रातने या प्रटारी माथे कदेई जो जावेला । तो चन्द्रमारे भरोसे राहूसू खताहीज खावेला। राहू कदाक न पायो तो चकोर तो प्रायसी।
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