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________________ (१७) ३. विशेषताएं प्रथम पिंड पाणीरो, रूपो तो जावररो, दरसण तो परमेसररो. ताल मानसरोवररो, हस्ती तो कजलो वनरोः पदमणी तो सिंहल द्वीपरी, चतुराई गुजरातरी, वासो तो हिंदुस्तानरो, स्वाद तो जीभरो, मतो तो पंचांरो, खेती तो बाड़री, धीणो तो भैसरो, देणो तो माथारो, गाळ तो मातारी, चूड़ो दांतरो, प्रादि-प्रादि । ४. ये वस्तुएं भली प्रमल खारा भला, खड़ग धारा भला, हेत मारा भला, धात पारा भला, हाथ वहता भला, माल खरचता भला, दांन मानसूभला, काथा पानसू भला । साहिब। जससू भला, खेत नीचा भला । घर ऊचा भला । राणी, पाणी पातळा भला । प्रमल जोरका भला । निसांग पोरका भला । इत्यादि। २-सभा श्रृङ्गार इस प्रति की प्राप्ति के पश्चात् 'सभा-शृङ्गार' नामक ग्रन्थ की एक प्रति सं० १७६२ में महिमा विजय लिखित ७५९ श्लोक परिमाण को मिली जिसमें पूर्व प्रति से वर्णन बहुत अधिक व सुन्दर प्राप्त हुए। यहां उसमें से दो चार वर्णन देकर हमें संतोष करना पड़ता है । वैसे इस ग्रन्थ में बहुत से वर्णन पाठकों का मनोरंजन कर सकते हैं। वर्षा का वर्णन इसमें दो बार पाता है । जिसमें पहला वर्णन उपयुक्त प्रति जसा है, पर अधिक विस्तार से है । दूसरा वर्णन इस प्रकार है१. वर्षाकाल हुउ, अहिती रहिउ कुयउ, वावि पाणी भरता रया । बादल उनया। मेष तणा पाणी बहै, पंथी गामइ जाता रहै । पूर्व ना बाजइ वाय, लोक सहु हर्षित पाय । प्राकाश धड़हड़े, खाळ खड़हई । पंखी तड़फड़ाइ, वडा माणस लड़थड़इ, काठ सड़इ, हाळी हळ खड़इ । प्रापणा परि कादम फेडइ, बीजा काज मेड़इ । पार पार न लीई', साध विहार न करी। अनेक जीव नीपज, विविध धान्य उपजे । लोकनी मास पूज, गाय भैस दूज । इत्यादि। २. धनी और निर्धनो का अन्तर निर्धनी वर्णन ऊचों तो एरंड, खाटरो तोहि नाग, घणो भोळो लांफु', बहु बोले तो लबोळ । धणु जीमे तो भूखो, थोड़ो जीमे तो प्रभोगियो । भला वस्त्र पहिरे तो इतर, सामान्य पहिरे तो दरिद्री । गोरो तो पांडु रोगियो, काळो तो कबाड़ी। व्यापारी तो भइङ्ग, बीखै तो सर्वधन बाह्य, विषयहीन तो नपुसक। धनी वर्णन ऊंचो तो अजुन बाहु, वामनो तो वासुदेव, गोरो तो कंदर्प, कालो तो कृष्ण, घणो जीमे तो अहारी, थोड़ो जीमे तो पुण्यवंत, ऊचा वस्त्र पहिरे तो राजेश्वर, सामान्य पहिरे तो मो, दाता तो कर्णावतार, जो न दे तो छाना गुण्य करई', पणो बोले सो भोळो, न बोल तो मितभाषी, जो लंपट तो भोगी, जो नपुसक तो परनारी सहोदर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003390
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarottamdas Swami
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1997
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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