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________________ वसन्त ऋतु वर्णन ( १५ ) तिसिह प्राविउ वसंत, हूड शीत ताउ अंत । दक्षिण दिशि तर उ शीतल वाउ बाई विहसह वरणराई । दोहा सब्वे भला मासड़ा, परण बहुसाह न तुल्ल । जे दवि दाधा रूखड़ा, तीहं माथइ फुल्ल ॥ अरिया सहकार, चंपक उदारं । बैल बकुल, भ्रमर कुल संकुल, कलरब करद्द कोकिल तशा कुल । प्रियंगु पाजल, निर्मल जल, विकसित कमल । राता पलास. सेवंत्री धाम । कुव सुचकुन्द महमहद, नाग भाग गहगह ! सारस ती श्री रिण, दिसि बासी' कुसुम रेरिग | लोक तणे हाथि वीणा, वस्त्राईबर भीणा । अङ्गारसार, मुक्ताफल तथा हार। सर्वाग सुन्दर, बन माहि रमई भूप पुरंदर । एक गीत गवार, दान विवाह । विचित्र वाजिन बाजई, रमलि तथा रंग छाजइ । एक बाद फूल त्रुट', वृक्ष तरणा पल्लब खू' टइ। हिंडोलह हींचर, भीलता बादि अलि सींच' । केलिहरों कउतिग जोग्रई, प्रीतमंत होई । पालक अवसर लही, ववंत अवतरिया तरणी वार्ता कही ।। ' उपमा व तुलना आदि प्रधान विभिन्न शैली के वन १. तुम्हें कहवउ धर्म परिण नमी जाणता मर्म । सांभलउ वन ते वरणवीर जे वृक्षवंत, नदी से जे नीरवत, कटक ते जे बीरवंत, सरोबर ते जे कमलवंत, मेघ ते जे समावंत, महात्मा से जे क्षमावंत, प्रसाद से जे धजावत, धर्मी ते जे दयावंत, प्रादि । २. माहरी लक्ष्मी इह सरीखी हुई। तब कहीइ ग्राम तरणी छांह, कुपुरिस तणी बांह, । दासीनु स्नेह, शरद कालतु मेह | मोड़ा मेह न ह, बहिल प्रावद छेह । अंतर दही नह खासि ३. जेटलु अंतर राणी मनइ दासी, जेतलु जेटलु अंतर मधुर ध्वनि न धासि । जेटलु अंतर समुद्र नद्द कूया, जेटल अंतर सोनइया नह रूपा, जेटलु अंतर बाप नइ फूपा । जेटलु अतर लूग नइ कपूर, जेटलइ अंतर खजुइमा नइ सूर । जेटलइ अंतर डाकिली नइ तूर, जेटलइ अंतर खाल नइ गंगा पूर । जेटलइ अंतर साधु नइ चोर, जेटलइ अंतर हार नइ दोर । ४. सूर्य पाखइ दिवस नही, पुण्य पाखइ सौख्य नहीं, पुत्र पाखइ कुल नहीं, गुरु उपदेश पाखइ विद्या नहीं, हृदय शुद्धि पाखड़ धर्म नहीं, भोजन पाखइ त्रिपति नहीं । साहस पावs सिद्धि नहीं, कुलस्त्री पाखई घर नहीं । Jain Education International १. इस वाग्विलास ग्रन्थ के कई बर्णन प्रस्तुत लेख में दिये गये अन्य वर्णनात्मक ५ प्रतियों में भी ज्यों के त्यों मिलते हैं व कई वनों में शब्दों का बहुत अधिक साम्य पाया जाता है । भेद-प्रभेद रूप वर्णनों को इस लेख में उद्धृत नहीं किया गया, जैसे कि जातियों का प्रसंग प्राया तो वहां ८४ जातियों के नाम हैं | आदि आदि । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003390
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarottamdas Swami
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1997
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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