Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 86
________________ राजान राउतरो वात-वरणाव गावड़ जाणे खरादी खराद उतारो छै. कमल नाळपी बांहां लाल चूड़ो वरिणग्रो छै. विचै सोवन चूड़ी विराज रही छै. बाजुबंध झावी मखतूलसू लटक रहिया छै. लाल कमलसा हसत कमल जावक मेंहदीरे रंग लागा थकां. चोळा फळी सी प्रांगुळी. गोरे प्रांचे प्राचीनां वरिण रही छै. छाप मूदड़ी नवग्रही जड़ाव वरिणयो छ. उरस्थल कूभाथ सारीखौ गजमोतोरो हार विराजियो छ. जाणें मेरगिररा टूका बीच गंगारी धारा धसी छ. नारंगी अणहार, सोपारी सा कठोर कुच वाटला तीखा कांचू वीच विराजिना. छै. अंगियां ऊपरै फूलांरा चौसर पहरिप्रां लांधरिणयां सिंघरी कटी लंक धड़े चड़ रहिौ छै. पान सारीखौ पेट पातलो अम्रित सी नाभी कुंडली माहि पाणी पीतां ढळकतो दीसै छ. जारण काचरी सीसी माहै गुलाब ढळकतौ दीसै छै. पेटरी अवली जाणे कामरा महलरी पाहड़ी वरणी छै. कर ले मापीजे तिरण भांतिरै भमर लक ऊपरि कटि मेखळा वणि नै रही छ. सुराही गळारै घाटि सभासलं पोंडी झीण गिरीप्रै ऊपरि वाजणी पायलरा घूधरा रमझोळ झाकिया जाणे कळहंसरा बच्चा बकोर करि रहिया छ. पगरी राती पीडी खालिमी कूतरारी जीभ सारिखी, लाल कमल चरण जावक महिदी रंगसूविराज रहिमा छै. पग अंगुळी राइवेलिरी कळी हीरा सा नख पारोसा ज्यों झांखि रहिमा छ. ऊपरै अरगोटपोल पावटा विछप्रारौ वरणाव वरिण नै रहिनो छ। तठा तपरांत करि नै राजान सिलामत चदावदनरी देहरी नरमाई गुलाब-फूल, तिल-फूल सारीखी. हंस गमगीरी गज गति लाड गति छै. इस भांत नख-सिख सुधा सोळे सिणगार कियां बारै प्राभूषण विराजिया छै. जाणे इन्द्र-लोकरी अपछरा, रूपरी रंभा पासमानरी ऊतर पड़ो. चित्रामरी पूतळी, विधाता हायस समारी. कामरी केळि, विरहरी वीज, सुखरी सिळाव, सोनारी कांब हुदै तिण भांतिरी संकेळी, नख मांस मांहे ऊलाळी प्राकासि जा, चाबळरौ चौथो खा, साख्यात पदमणी. वाळि वाळि मैं गांठ दीजै. इण भांतिरो तू जी, हलका ज्यों लचकती. रतनाळा लोचनां, परिणाळा काजळ सारीजै छै. जोहर कांचू जडिज छै. भमर लंक, झीण लंक ऊपरा चालहरा घाघरा वासिजै छै दखरगो चीर प्रोढि छ पाटंबर नोलंबर जरकसीरा वणाव की छ. आडिमां फरिणयां मुखमली खासां विलाविना थकां जाळौरी सांठ, खुरासारणी भळके सांतिनं ऊंठ सौदागरर घोड़े चालवियं पठाण अरई प्राय चींघडि रूठ, गाम-धरणीरा सा लौचनां कियां, वाळि वाळि मोती पाठवियां थका, काळरा नेवर पहरिप्रां, केळिग्रभ चंदणरौ छेडी, रतनारी रासि, अंधारैरी पादीत, अरसरो अमरी, सरगरी झांप, विरहरौ समूह रूपरौ निधान, थाका हंसरी टोळी, निवायैरी होळी, घरग हाट नै चीरमां लपेटी थकी विराजमान होइ नै रहो छै. जाण पासोजरी पूनमरौ चद्रमा सोळे कळा संपूरण उदित हुनौ छै. इण भांत ऊजळे पतिव्रतरी पाळणहार, ऊजळी सखियांरो टोळीसू राजहंस राइजादी राजकुमारी झरोख चडो झांखे छ. बधाईदार दौड़िया छ. वधाईदारां प्राइ खबर दीधी छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88