Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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राजान राउतसे वात-बणाव
परमेसर प्रणमूप्रथम देवां सिरहर देव । सारदा गुणपति समरि सत-गुरची करि सेव ॥१॥ दिनो सेत वरदान तू परमेसरि प्रसताव । राजानारी रस-कथा विधि कहि वात वरणाव ।।२।।
अथ वात
ॐकार महादेव परमातमा परम सिच परम सकति प्रचळेसर प्रचळ प्रासरण कियौ. तिण थांनकरी ठौड़ नंदीगिर हेमाचळरौ बेटौ दूसरौ मेर गिर अढार गिररौ 'राजा बाबू गिरंद कहीजै. तिणरै बसणे ऊपरि ईसवररा अवतार महाराजा राजेसर
राज करै. तिरण राजेसर राजा महारांणी महामाया पटराणी तिणरा पेटरी नीपनौ कुपर गुर पाटपति कुपर श्री राजान कुअर-पदो भौगवै. कामदेवरी मूरति नब कोटी मुरधररा पति नरेस अनेक विरद विराजमान ।
प्रथ काव्य भाले भाग्य-कला मुखे ससिकला लक्ष्मी-कला नेत्रयोः । दाने देव कला भुजे जय - कला जुद्धे प्रतिज्ञा - कला ।।
भोगे कोक-कला बले गुण-कला चिंतामणी सा कला । . काव्ये कीर्ति-कला तव प्रतिदिनं क्षोणीपते राजते ।।
वात
खट-त्रीस वंस राजकुळी सिरोमणि सुरज वंसी राजान मारवाडिरा नव कोटरी कुराई जळाबोळ राज-पदवी भोगवै. राज-पाट सिंघासण छत्र डंड माथै सेत चामर इळावीजै छै. सेत वानां सेत नीसारण सेत झंझा विराजमान हुमा छ. तिण राजांन जाउतरा वात वणाव वखाणीजै छ।
तठा उपरांति करि नै राजान सिलामति तिण राजांनरी राजवट च्यार ठिकाणे
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