Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 75
________________ ४० राणाम राउतरो वात-वरणाव डोलियां, झोलियां ऊपडिमा छै. जिके प्रवसांण सुध खत्री छै तांहरो भरोगी घिस छै. जिके सतवंती छ तिके सामरै साथ बळण चालीमा छ. तिके सती प्रगनि सनान करि नै सरग भोगरा सुख मांग छै. पू करण रस कीजै छ. जगवासी लोग छै त्यांना करण रस ऊपनौं छै। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति राजान राजावत परावर रिणखेत हाथी पायो छै. रिण जीत नगारा धुबै छ. फतरा सेवानां वागा छ. जस जैतरा डंका वाजिमा छ. कुसल खेम पारदरा वधाइदा दौडिमा छ. घरां साम्हां फौजांरा घडूस चालीमा छै. पावै छै सु किरण भांत बखांरगीज छै. पातसाह देरा हसंम रखत तखलू मां हंता सुप्रांरिण थाणे दाखलि कोग्रा छ. अजमेररा थाणारी जमीत कीजै छै. घरि घरि मंगळाचार पाणंद वधामणां को छ. घरणां माल निजराति उवारी छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति तिणि प्रस्तावि, राजानरै सिकारनो असवारी हुइ छ. नोबत टकोरा पडि नै रहिया छै. बाहरि डेरा कोना छै. असपका खड़ी हई छ. तंबू, समीरणां, सिराइचा, रावटी, वाडि समेत करणाटी, गूडर तांणीमा छै. दळ वादळ लागि ने रहिया छै. रजपूतांरा थाट मोगर मिळे छै. महोला लीजं छै. तठा उपरांति करि ने राजांन सिलामति हजार तोपची खंधार, शब्द भेदी प्रागबर जागरा जाळरणहार, आकास उड़ता पंखी पाई. इण भांतिरा नाळ गोळी दारू जामगी साज-बाज किया थकां, मुहडा मागलि सजि ने ऊभा छ। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति फोज बंधीरौ बगाउ कीजै छै. फौजां प्रागै प्रातस चाले छ जबरजंग नाळि, किलकिला नालि, जंबूरनाळ, गजनाळ, हथनाट, सुतर नाळ, कुहकवाण, राम चंगी कई भांति भांतिरा पाराबा रहङ्कए घाती प्रावै छै. तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति हाथी सज की वह छै. सु किसड़ा बखांणीजै छै. थेट सिंघलदीप अनोप देसरा नीपना, धगरताह, भद्र जातीप्रां, हाथीप्रांरां भाथळा भांजिना. सवामण मोती प्रांमळ प्रमाण नीसरे प्रहार भार बनमपती सूअोघसतां थका हमला खाई में रहोत्रा छ. उरै गजराज रेवा नदीरै काठ द्रह ऊपरै पांच हाथीर हलके लीग्रां मोड़ी खर करि नै रहिना छ पाणीरी छोळारा भकोळा खावता थका गज कोला करि नै रहीमा छ । तठा उपरांति करि नै गजान सिलामति कपोलार मदगंध करि नै भौरांरा भोर पड़ नै रहीमा छ. भौरां वैठा सासहे नहीं, डीर वरां बलाका खाइ नै रहीमा छै. त? कालवत हसतगीर फरस करि नै छिबितरी खाड माहै पड़े छ. पछै लोह सांकळरा प्रास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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