Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 76
________________ . राजान राउतरो पात-परगाव नाखि नै तिके हाथी पकड़ीज छ. इणी भातिरा सींधली गजराज वेसास नै प्राणीमा छ, ताहतूपणा मलीवा, बेसवार, मोगर वे देने पाटि पाणी नै सझाया छै. ताह गजराजां नूसार जड़ीमां जंजीरा लौह लंगरा लमाडि नै खभू ठाणांसू छोड़ीमा छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति बड़ा जूह गयंदा गजराजांनूगड़ां चरखीग्रां मारि, पोतारि, नीठ वसांगीमा छै. रूमाल फेर झाड़ी छै. प्रांमळा तेलरो बोह दे नै काळा जह कीमा छै. गजराजांरा भाल कपोळ सूडाहळ घणै लाल सिंदूरसू चरचिमा छ. जाणे साख्यात गुणेशजो प्रसन्न हुआ छै. कनां इद्र धनुष फाविप्रो छ. तला जोड़ पटा झरत कपोलारा दाग छुटि नै रहीमा छ. तोह गजराजारा मद छरित बारह मास ऊतर नहीं थे। तमा उपगति करि नै राजान सिलामति पाखती सेत पमर विराजिमा छ. जाणे मेरगिरगंगारी धारा पसी छलाह गजराजोरा ऊजळा धातूसल बंगड़ीपासू' गरिमा है. जाणे पटाबीच बगलारी जोड़ी परी बीसै छ, देवळरो घटावळि जेम घंटा ठणक न रही गाण पणा पूग पावसरेराहक नै रहीमा गजराजारा डील रेसमी नाड़ोसू भी जटा-जूट कीमा छ. जरवाफ बणायटरी लालू ठाकिमा छै. सार पाखरसिरी झालरी लोहनी कोठी ऊपर समाह करि ने गरकाबकीमा छै. गजराजा ऊपर गजळाला ढळफिन रही है. जणि पहाड़ा ऊपरै खजूर कल प्रांबारी मंजर ढकि नै रही छ. गां ऊपरै धजां, नेजा, बीषा फरकि नै रही छै. जाणे हेमाचलरै टूका माथे कसू पूल नै रहीमा छ । तठा उपगति करि नै राजांन सिलामति उमां गजराजां प्रागै गड़ा चरखी दारू . पारावा टि नै रहोमा छै. जाणे धूधळे पहाड़ पाखती रोकी लाग रहा छ, मदि वहतां मतवाळा ज्यों पग नीठ भरै छ. गड़ारा तोडणहार, दरवाजांरा फोडणहार, दळारा मोदणहार, दळारा पगार, फोजारा सिणगार, इरण भांति गजराज सिणगार पाखरीमा छै. पीलवाण भाथळां माथे पगारा प्रांगूठा चलावै छै. गजवागा खेंचे छ. धता धता कर छ. नाग जो छछोहा जाणे बावळारा लगस पवन जोरसूचालोमा जाने छै. इण भांतसू गजराज मुहडा प्रागै ही डुल छ. डोहां करता हमलाखाना वहै छै. इण भांतिरा हाथिमारा हलका साज वाज सहित साजंति वरणाव नैं राखीमा छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति अजमेर थाणैरो मुकाम किमो छ. सुखासण पालखी घोडाल रथ पाइक बणि नै रहीम्रा छै. कटकारा खूर पडि नै रहीमा छै. हाथी लड़ावीजे छ. पाइक सिरंम साझ छं. फूलहाथा फेरी छ. भांति भांतिरा तमासा लाग ने रहीमा छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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