Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 74
________________ रामान राउतरो वात-वरणाव सुतर नाल्यां, जंबूरा नाल्यां, रामचंगी हथ नाल्यांरा चरणणाट वाजे छै. आकास छायो छै. सु जारण तारा छुटै छ. कुहक वांगरी कहक पड़ि ने रही है. प्रातस प्राराबा हवायारो मारको पडि नै रहियो छ. अधार घोर हुइ नै रहीमो छै. इरिग भांतिरो प्रोसर मंडि नै रहोयौ छै. रौद्र रस प्रगटोओ छै। तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति पचास टांक चिलेरोखा अणहारी कबाणग घोकार वाजि नै रहिया छं. त्रींगडा भलोडांग बूम पड़िया छै. सवाय मेहरौ जोरि सोक बाजे तिण भांति पंखारी रुग वाजि नै रही छै. केवर दुवासू कोरे पंखारै पूट फूट नीसरै छै. तीरां गोळीनां रै मारक पड़ने मिनावर पांख समारण न पावै छै. माकास ऊड़त पंखी पड़े छ । तंठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति प्रसवारांरी वाग ऊपाड़ी किलकिला ज्यों ऊपाड़ि ऊपाडि हेमरां नौखीज छै. झूसरमा ऊपरै बरछी चमकि नै रही छै. रामण गांजा सेलारा धमोड़ा पडि नै रहीमा छ. सरकत पार पार हुने छै. बगतरांरा तमा फोड़ फोड़ पूठी परा मरणोपाला प्रणो सीसर छ. सु जाणां धोवर पूठे जाल माहे मछा मह काढीमा छ। ' तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति जिके सूर सामंत रावताला छै. सु हाथीनारा कभथळा दांतूसला पाउ दे दे ने घाउ वाहै छै. झंडा नीसांग पाड़े छै. पातिसाहरा गूडर गाहीजे छ. गजटला गाहीजै छै. वीरा रस ऊपनो छै. वीरा रस मातौ छै. वीर हाक वाजि नै रही छ. नाराजीमारी झांट पडि नै रही छै. वगतरां जारां तरवारीमारा वांड त्रुटि नै रहोत्रा छै. जाणों बादळा माहै वोजडिप्रांरा सिला ऊपड़िया पाखरां ऊपरै सारधारा फूलधारां वाजी सु ठणणणण जाणे परभातरी झालर ठंगकी, नरबगतर विधंस हमा. कनां वह भायामी रांति वाही. तठा उपरांति करि ने राजांन सिलामति फंतकारी गहकि नै रही छै. भयानक रस मातौ छै. भयानक रस हुइ नै रहियो छ । तठा उपरांति करि नैं राजांन सिलामति राजांन राजाउत मारूरा सामंत राइजादा एक पाखर, लाख पाखर, अरणीरा भमर जांहरा पग मेर माथै मंडीधा छै. एकूक रावता लेर हायि हजार हजार मोरजाना पड़ोग्रा छे. पागलै कवेसरे कहिनो। दोहा सुर असुरा इण पाहड़, पाही एक प्रवक्क । पिडि जितरा हींदू पड़े तेता सहस तुरक्क । मेछांण कटि घांस हा छ. चालीस कोस रिण साथरै पंजा हजार पडिमा छ. करकारी बाडि हुइ में रही छ. विजागरी वालद पड़े तिण भांति घोड़ां भड़ा हाथीप्रांरा गरा पडीमा छै. वसंतरा केसू पू.ले तिण भांत घणां घायांसू ध्राया थका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88