Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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राजान राउतरो वात-वरगाव
३५
रहीमा छे. प्रिथीरा लोक विहंगम पंखी छे. सुर तरवरां रूखारा औला ताकै छे. तर - वरोरा पान झड़िया छे. सु जांणे वस्त्र विनां नागा डिगंबरां सारीखा नजर झावे छे. निवांणारा पाणी नीठिया है. पुोइरणी वलि नै रही है प्रोछे जळ माछळा तड़फड़ी रहीमा छै. गजराज सुका सरोवर ढूढ़ता फिरै छे. सादूला केसरीसिंह ज्वालानल श्रगनीसू बळतां थकां वा वनरा हाथिप्रांरी पेटरी छाया सूता विसराम करे छे. भुयंग सर्प तीसरीया है. सो लू ने तावड़ेरी बळता थकां द्रौड़ि द्रौड़ि ने हाथीश्रांरे सीतल सूडाला मांहै पेसि पेसि रहीमा छै. इग भांतरा सबळ जीव तिके निबळ हुइ ने रोमा छै ।
हमें तठा उपरांति करि ने राजांन सिलामति ग्रीषम रित मांहे जिके राजानां ठाकुरनां सुख जेठ मांहै कहीमा तिके सुख सुर जेठ कहतां इन्द्ररी ठकुराई पिए नहीं ऊनां राजांरा सुख कहीजै छै. जो उरण बगीचां मांहै हमामार महल छोह पंक ढालीचा घर तहखांना वरणाया छै. झरोखा, जालिए, छारिणों पवनरी हवा पड़ि ने रही छे. श्री महल केसर गुलाब छांटीजै छै. मांहे जळ गुलाबसू चहबचा भरीमा छै. धरणां मलयागर चंदरण, केसर, कपूर, घरणां गुलाब ने सुरा बरफरा पांरणीस घसीजै छै. प्र लेपन लगावीजं छै. अगे खोळ कीजै छे. वीझर वाउ ढोलिना छै ।
तठां उपरांति करि ने राजांन सिलामति उवां हमामां महलां बाहरि बागबगीचांरा रसता लागा छै. चोकीए विछाइत वरणी छे. पाखती जळ कूल छूटि नै रही छै. बागें रसतांरा चोहबाचा भरिया छै. खजाना भरीमा छै. चलत नळांरा फुहारा छूटि नै रहीया छे. क्यारे गुलकारी, रंग रंगरी बूटी, फुलावरी सबजी लागि नै रही छै ।
तठा उपरांति करि नैं राजांन सिलामति उण बागाइत मांहै ग्रीषम रितरा विलाइती वालेरा खस खानां, ऊंची ठोड़रा बंगळा, रावटी वाळा बंधरा ठांसारा गूंथि भांति भांति खसखानां वरणाया छे, घरणं सीतल पांणीस सीचिमा थका atri वाइयां हींफा खाइ रहीना छे. तठे विलाइतरी ग्रंथी चटाई श्रमोलक विछा रही छे. ति ऊपर बैठा छत्रीस रोग हरे ऊपरे ढोलिना गिलमांरी विद्याति बाणि नं रही है. सेझां ऊपर घरणां फूल कपूर पाथरीजं छै ।
तठा उपरांति करि ने राजांन सिलामति किरण भांतिरा सरबत छांरगीजं छे. घर बेदान, दाड़िम कुलीरा रस लोज छै. सो धरणी कालपी मिसरीरा भेळ धरणी एलची नं मिरचार भेळ बौह लागे थके ऊजळा कपूर वासी गगोदक पांणीसू ऊजळे गळ भोळि भोळि भारीजै छै ।
तठा उपरांति करि नैं राजांन सिलामति इकत्रीसमी ताररा पुराणा पोसत. मंडवाईरा
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