Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 69
________________ राजान राउतरो वात-वरणाव तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति हमैं आगे वसंत रितरा वरणाव वखाणीजै छै. दखिरण दिसा मलयाचल पहाड़रौ पवन वाजिनो छै. सीत मंद सुगंध गति पवन मतवाळा मैंगळ ज्यां परिमल झोला खावतो वहै छै. अढ़ार भार वनसपती मकरंद पुलादिरा रस मांणतो थको वहै छै. अंबर मोरीजै छै. कंपळां फूटीजै छै. वणराइ मंजरी छै. वासावली पूटि रही छै. केसू फूलि रहिया छै. रितिराज प्रगटीमो छै. वसंत आयौ छै. भमर मधुकर झंकार करी रहिया छै. मधुरी वाणीरा सुर करि कोकिला बोलि रही छै. बाग बागीचां दरखत गुल कारी झिलि फूल रहो छ । तठा उपरांति करि ने राजांन सिलामति जिके छोगाला छयल छबोला जुन हसनांइक पू.लांरा छोगा नाखीमां. थकां फूलांरा चोसर पेहरीयां थकां अगरचें मरगचें केसरिङ्ग कचमैले वाग की घणे चोमे अंतर पू.लेल गळा मांहि भीनां थकां घणे अंबीर नै गुलाल मांहै गरकाब हुआ थका झोली भरियां थकां दिसि दिसि छुटि रही छ. घणे अंबीर नैं गलाल माहै गरकाब हमा थका अंबीर गलाल उडि रहिया छ. दिस दिस केसरि पिचकारी छटि रही छै. आकास ऊपर अंबीर नै गुलालरी अंबर डंबरी लागि रही छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति सारीखा साथरी टोळियां कियां थकां झूल गैतूल पड़ि नै रहीया छै. केसरिया वरणाव कीनां थकां प्रागै वखाणी तिण भांतिरी नाइका पात्रांरा ढूल चलीया जायै छै. डफ चंग मुह चंग बाजि ने रहिया छै. वीणा नाल मृदंग बाजि रहिमा छै. वांसली वाजि रही छ. ढोलकां बाजि रही छै. फाग गाइजै छै. फाग खेलीजै छै. नाचीज है. हास विणोद कीजै छै. हास रस हुइ नै रहीयो छ. फागोटांरा मुख सवाद लीजै छै. घरि घरि वसंत राग हुलरावीज छ. कामदेवरी दुहाई देतां फिरै छै. पंचम राग गाईजै छै. वसंतरा वरणाव हुइ नै रहीमा छ। तठा उपरांति करि ने राजांन सिलामति होलिका प्रब पूजिजै छै. प्रागै बखांरिणया तिण भांतिरा अमल मागीजै छै. हमैं ग्रीषम रितरा वरणाव कीजै छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिसामति इतरा मां ग्रीषम रित पाई छ. सो किरण भांतरी वखाणीजै छै. नैरत दिसारौ ऊनौं पवन वाजियो छै. उन्हालसी प्रगटीमो छै. जेठ मास लागौ छै. सूरिज व्रख संक्राति आयौ छै. सुजाणीज छ. सूरिज खां ने बरखतारा पोलो ताकै छै. तो बीजां लोकारी कौंण बात. सूरजजी उतराध सामां वहै छै. सु जांणीजै छ. हेमाचलरी सरगो लिङ्ग छ । तठा उपरांति करि नै राजांन सिलामति ग्रीषम रित मांहै पवन पावक समान वाजियो छै. प्रथी अप ने वायू प्रकास च्यारि तत पांचमै अगनी तेज तत भेळा मिल नै Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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