Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 18
________________ ( ७ ) "महा पित्रुनउ प्रालउ, प्राथ्यो उन्हालउ । लूय वाजइ, कान पापड़ि दाइ, । झाझूनां वल, हेमाचलना शिखर गलई, निवांगे खुटइ नीर, पहिरइ माछा चीर । एवडऊ ताप गाढउ, भावइ करवउ टाढउ । वाइ बाजइ प्रबल, उडइ धूलिना पटल । सीयालइ हुति मोटी रात्र, ते नान्ही थई रात्रि, सूर्य प्रारण पर ताप, जगत्र संताप, जे जीव यल चर, तेहि जलासय अनुसरह ", यह ग्रन्थ वर्णनों का सुन्दर संग्रह - ग्रन्थ है । सम्भवत: इसकी रचना १५ वीं सदी के अन्त या १६ वीं सदी के प्रारम्भ में हुई है। पूर्ण प्रति मिलने पर इसका महत्व और भी बढ जायगा । १६ वीं शताब्दी की अन्य दो रचनाएँ 'राजस्थानी' भाग २ में प्रकाशित की गई हैं । इनका भी थोड़ा सा उद्धरण नीचे दिया जाता है "रायाँ महि वडउ राउ श्री सातल, जिरणइ मालविया सुरताण तराउ दल, भांजी कीधउ तहल । खुदाई - खुदाई तोब तोब करतउ नाठउ, जातउ गरणउ घाठउ माल्हाला हिरण ती परित्राठउ | धरणी गाes घाली बंदि छौडावी, रेख रहावी, खाडइ जइत्र प्रणावी नव कोटो मारुयाड़ि भली माल्हावी । मोटउ साहस कीधउ, वडउ पवाड़उ सीधउ । " श्रीकरणराय रिणमल्लानी, तई कँपाव्या सेन सुरतानी । तई हंस-नइ परि निवेडया दूध न पाणी, कवी गुरु करि कहाणी । " जिइ ठाकुर प्रवेसक महोत्सव कराव्या, तरिया तोरण बँधाव्या, बंदरवालि ठाम ठाम सोहाव्या, व्यवहारिया साम्हा इरिण परि वांदिवा श्रव्या कुरंगही जो तस्या वहिलई कल्होड़ा, कुरण ही पल्ला या प्रसरण होड़ा, केइ करहि चडी द्यइ दह दिसि छोड़ा, केइ मुखि मारणइ तंबोललवंग-डोड़ा | " तिमरी प्राविया, पइसारा मोटर मँडाण कराविया, जांगी ढोल झालरि संखि वादित्र, वजाविया । बिहु पासे पटकूल तरणा नेजा लहकाविया, परि-परि खेला नचाविया, तरिणया तोरण बँधाविया । गीत गान कीधा, पून कलस सुहव सिरि दीधा, भला मांगलिकं कीधा । घरि-घरि गुडी उछली, श्री सघतरणी पूगी रली ।" १७ वीं शताब्दी के वर्णनात्मक गद्य दो संग्रहों की प्रतियाँ मिलती हैं, जिनके कुछ उद्धरण अपने अन्य लेख में दे चुका हूँ। वर्णन बड़े सुन्दर हैं । लेख-विस्तार के भय से यहाँ इस शताब्दी की अन्य दो रचनाओं के उद्धरण दे करके ही संतोष करना पड़ता है। पहली रचना 'कुतबद्दीन शहजादे की बात' है । उनकी १७ वीं शताब्दी की लिखित प्रति श्रनृप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर में उपलब्ध है। हिन्दी गद्य के प्राचीन रूप की जानकारी के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण है । कुतबबीन साहिजादेरी वारता "प्रावि प्रथ कुतबदीन साहिजादैरी वारता लिख्यते ।' बडा एक पातिस्याह । जिसका नाम सवल स्याह । गड मौडव थांरगा । जिसके साहिजादा दाना । मौजे दरियाव तीर । जिसके सहरमें वसे दान समंद फकीर जिसकी भौरत का नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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