Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 49
________________ १४ खोची गंगेव नीबापतरो दो-पहरौ पाटा-बंधाईरा पाटेदार खाय चुका छै. पांच-पांच से हाथ कोरी पाटांनै लागी छै. इण भांतरा रजपूतांनै अमल सिरदार प्रापरा हाथां करावं छ. धरणे चोजसू मन लियां मनहारां की छ. दिल हाथ लीज छ, अमलां गहतंत हुवा छ. मातै हाथीज्यू झोटा खाय रह्या छै. फुरणी वाज रही है.कोसा लाल चिरमी हुवा छै. प्रांख्यां छिटक रही छै. मधरै-मधर हुक्कांसू तमाखू खायजै छै. गल्हां कीजै छै. फिर पाया छ.हाथ पग मिटीस उजळा कोज छै. कुरळा कीजै छ. सिंभयावांदरणरो वखत हुवो छ, वनाती पासण विछै छै. पीतलरा भरतरा धूपिया मागे प्राण मेलजै छै. गूगळ बतीस मसाल सहित खिवै छै. खसबोई महक रही छै. देई-देवता खसबोय ले रह्या छै.बनातरी गऊ-मुखीमें हाथ घातियां आपरै इष्टरो ध्यान-सुमिरण कर परवारिया छै. जाजमां प्राय विराजै छै. तठा उपरायंत मसालां हुई छै. दुसाखा हुवा छै. मसालचियां प्राण मुजरो कियो छ. नजर दौलत छड़ीदार कर रह्या छ. अमरावां सिरदारां खिजमतगारां सारां ही प्रारण जुहारमुजरो कियो छै. सारा ही मुहडै प्रागै विराजमान हुवा छै. तठा उपरायंत सूळांगरियां होसनाकांनै हुकम हुवै छै-जाजमां कनारै सूळां तयार करो, सू हिरणारा मगर पसवाड़ा पीडांसू मांस उतारज छै, छूांसू छुण छै. सू छुरी किरण भांतरी छ ? पेसकवज चकचकी रूमी विलायती म्यानां माहां काढजे छै. तिकारा दस्ता किण भांतरा छ ? मोहरैरा गुरड़ोदगाररा संगरेसमरा माहीदांतरा रूपैरा सीपरा जड़िया तर-तररांदसतांरी भांत तिकां छुऱ्यांसू मांस छाजे छै. मसाला वेसवार लूरण चरायजै छै. दहीरो रजबो दीजै छै. तरगसां मांहां सीकां काढजै छै. बेवड़ा ठीहां चाढजै छै. बीच खीसरी भरती दीजै छ.सू तसु वीढ सीकां ऊपर चाढ छ. प्राड हाथ डोरा घीरा दीजै छ,इण भांत सूळां वणे छै.वडी देवगिरी थाळीमें उतारजै छ. तठा उपरायंत दारूरा घड़ा मगायज छै. सू दारू किण भांतरो छ? अराकरो वैराक संदलीरो कदली पूलरोअतर बाती बझैधु वाधोर तिवारारो काढियो,बोदी बाड़में नाखियां जग उठे. बापरो पियो बेटो छिके. प्रसवाररोपियो प्यादो छिक. राजा पीवै परजा छिकं. इण भांतरो पहलड़ो तोडेरोधातो, सू दारू केसरिया गुलाबियारां दाव दीजै छै. मुजरा कीज छ. मूनहारां हुवे छै. मतवाळा हुयज छै. उपरा उण भातरां सूळांरो थाळ वीचमें लाया छै. मोछण-लुगार हुय रह्यो छ. चोळबोळां हुयज छै. तठा उपरायंत देसौत फेरांसारा तठा उपरायंत हवलदारां अरज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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