Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 52
________________ पग-पान पोलरी प्रणखट पगां विराजे . माभूखण असा विराजमान हुवा छै जाणं मेर गिर दोळी नखत विराज रही छे. माळ ater गंगेव नबाबत दो - पहरी हाम काम लोचरणी उलाळी प्राकास जावे. चावळरो चौथो हैंसो खावै. तंबोल विना खाधां प्राहारा विकार थावे. · माडी मोडो कटारीरी पड़चळी समावै. - उतरवाव वाजे दखरणने लुटं. चोवा सेवा जेतो वीचसू भाज जावे. इसी इसी खोडस वरसांरी मुगधा मध्या प्रोहा रूपरो निध्यान. जाका मलूक हाथ-पांव. जंघा कदळीको ग्रभ. Jain Education International बांह चंपारी डाळ. सिंघ सी कमर. कुच नारंगी. नख लाल मलोला. ग्रीवा मोर सी. बोली कोकल मी. अवर प्रवाळी. दांत दाड़मी-कुळी. नाक सुवारी चांच. नाथरा मोती जाणे सुत्र ब्रिहमपत सारखा दीपे छे. जागे लाल कंवरी सबोय लेवरण सेत भवर ग्राया है. घ सा नेत्र. मीन जैसा चपळ. भूह जा इंद्रधनख छै. मूख पून्यू रे चंद ज्यू सोळ कळा संपूरण छँ पेट पींपळ पान है. १७१ पासा भाखरारी लोथ छै. नितंब कटौरा सा है. नाभी मंडळ गुलाबरो फूल सो छ. साख्यातरी पदमरणी. कना रंभा सी. सरंगरी उरवसी. सी कामणी पोसाखां कर मोहला माहे मैरावतीरी पील. चोसां च्यारां खुरणां जगाय पान चावै है. चांदणीरा विछावरण खुल रह्या छै. ऊपर बनात कलाबूती चांदणी रूपैरी चोभांसू खड़ी की छे. सोनारो पिलंग कसरणां कसियो है. सो सोहेक सोभायमान दीसे छै ? जाणं खीर-समुद्ररा भाग छै. प्रोसीसा itsar कैसा विराजे है? जागै सोगीमल काबा समुद्र में केळ करै छै. इण भांत कामणी पोसाख विसायत कियां बिराजे है. जिसमें प्रसवारी प्रारण उतरी है. सारो साथ मुजरो जुहार कर घराने पधारं छं. घोड़ा पायगा लगायज लै. गंगेव नींबावत भीतर पधारे छै. खमाखमा हुय रही है. आरण ठोलिय विराजमान हुवा है. मुंहई धागे पातरां पोसाख कर साज बाज लियां खड़ी है. हुकम हुवो है. राग-रंग हुवै छै. छह राग, तीस रागणी. मूरतत्रंत खड़ा हुवा . सात सुर तीन ग्रामरो भेद वणियो छै. भाव दिखावे छे. फेर दारूरी मुनहार राज- लोक करें छै. तटा उपरायंत सारी राज-लोक मुजरी कर बोहर्ड है. जिगरो वाटो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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