Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 53
________________ १८ ना खीची गंगेव नोंगावतरो रो पहरी सू हजूर रहे छ. सुख कीजै छ, रस नर सुर नाग न घट्टियां, लीज छ. केसरिया दुपटा प्रोढ सुखसू काळे केहरियाह । पौढजै छ. परभात हुवी छ. अमलारी जळ पूरिय पखाण ज्यू बायहसूअांख खुली छै. दरबार पधारे छै. साथ सारो मुजरे पावै छै. मुजरो . गल्हा ऊबरियांह । लीजै छै. अमल कीजै छै. गोठ मजलस भलियू भला, नरांह अमलारा बखाण हुयनै रह्या छ. फेर , लांबीयूं लांबा नरां। ही कोई राजवी माणगर हुवै सू इण मुळवा मुवां पछांह भांत ऐस माणज्यो. वाता रहिसी वोच उत ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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