Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 29
________________ (१८) ३. प्रभात व संध्या वर्णन प्रभात हवई कूकड़ा बोल्या, लगारेक नींदथी डोल्या। नींव कोल्या, मूकी संभोगनी लोल्या, स्त्री भार उमडोल्या। प्रावइ नारि, बारि उघारि. राति अंधारि । दही संभाल्यू, विलोवरणो पाल्यू। रातिज दीस छ, घटी पीसइ छ । इतरइ संख वाग्या, झवकीने जाग्या । तितरई झालर वागी, स्त्रियो पण जागी, उठवाने लागी। मुहड़े बोली-उठो भाई ! जागो भाई ! राति विहाई ! प्रह पीळी थई ! राति डरी गई ! चड़कलड़ी चहचई ! मालण वाड़ी गई ! नोबत गड़गड़े छ, पारसी भणे छै, खुदा खुदा करे छ । . संध्या सूरजना किरण पच्छिम ढल्या, पंथी सगां नइ मिल्या । विरहीना हीया वल्या, गोवाळ घरे वल्या । चौपू लाव्या, आप आपना घरे प्राध्या। पंखी टळवल्या, माळे जावा ने खळभल्या, चोर सळसल्या, पावइ हळफल्या। पाकास राता, मेह करि माता । क्या किरण नीला, क्या किरण पोला । नाना प्रकारना रंग, भला सुरंग । वाध अनंग, जंगी करै जंग, भोगी पीये भंग, स्त्री वंछ संग । आदि। ४. शीतकाल वर्णन भोगी भमरने प्यारो, जोगीश्वराने न्यारो। महा टाढो, वाजइ गाढो, जावानो नहीं मिळे किंहां साढो। दाहे रूख बाल्या, सज्जन ही साल्या। स्त्री सूधरणी गोठ, खावा लाडू सोंठ । वासइ सगड़ी धख, प्रवल चीज भखई, ठारे करि ठऱ्या, हाथ सोड़ में धर्या । हाथे न लेवई वस्त्र, प्राधा मोठे वस्त्र । लोक सीसिपाट करइ, चौपू उछरई', ताढह न चरई धूजे बाळगोपाळ, विरहीमां पड़इ हवाल, सहु बंठा चौसाल, साचव्या देहरा नइ पोसाळ, एहवो सीतकाळ ।। उनालोगयो सियाळो प्रायो ऊनाळो । लू बाजइ छै, सीत लाजइ छ, पग दाझइ छ। तावड़ो तपीजइ छै । पंथी पसीजइ छ, चन्दण घसीजइ छ । रूख पात झड़इ छ, परिणहार पांणी माटइ लड़इ छ ।। वाव कूवा सूके छै । पंथी मारग मूकै छ, कंठ सूकै छ। प्रादि २ । ६. अंधारी रातरो वर्णन सांझ परी गई, गुदड़ी परी थइ, दीवइ जोति भई । चोहटइ भीड़ मिटी, व्यापारीनी महिमा घटी, हाटइ ताला जड़इ। पाप प्रापरै घर प्राया, कूची लाया । स्त्री सोलह सिंगार सजे, गणिका जारने भजे । हाथे हाथ न सूझइ, कोई कोने न बूझइ, विचार मारणस मुझइ । चोर ते धसइ छ, बूतरा ते भुसइ छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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