Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 44
________________ खीची गंगेव नींबावतरो दो-पहरी गायज छै. जायफळ लांग इळायची मिरच विरहाळी अजूनागकेसर भमरटंटी तिज तमालपत्र तंबोल प्रत संथी.और ही मसाला मंगायजै छै. मिश्री कालपी गंगापाररी मंगाय कोरा घड़ामें भिजोथ छै. तठा उपरायंत इलूरारी कडो क्षेजवळरो घोटो धोय तयार कीज छ. भांगण बीण मोकळा पाणीतू धोयज ई. फेर कोरी हांडीमें रांधज छै. तठा पछ घोटज छ. भला मोटियार होसनाक जुबान बरणाय छ. बेयड़ा गळरणांतू मचकाय काढज छै. इसी जाडी कादर्ज • माथं टीको काढ़जं तो नीसरे, पयनरी मारी सींक ठाहर. इण भांतरी भांग काढ तयार कीजं छ. कसूबांनू होसनाक पवन करै छै. सू रूपोटां में लियां खवास पासेवाण हाजर करै छ. मुनहारां हवै छै. देसौत आरोग छै. अमलां चाक हुयज छै. जाणं काळा- वासग तिरै छै. जळ डोहि रह्या छ. जाणं रेवा-नदीन हाथ डोहळ रह्या छै. इसौ समइयो वरणनै रह्यो छै. जिसमें पारणोमें तिरता मुरगावी नजर आवै छ. तिकार सिकारै पगा बंदूकां गिलोलां मंगायज छै. सू बंदूकां किरण भांतरो छै. ? गगा-पाररी, सीहनंदसमियागकी लाहोररी करनाटकरी फिरंगरी थटारो. घरी सोन-रूपमें गरकाब कीवी थकी. नकसदार जाणे गोडिय नागण लांबी कीवी छै. दूसरो बीजरो सळाव सीस पीळियै दुधरी लकड़ीरा कुदा छ,रूपैरीताराराकोकड़ी सीरम सपेतंरा बंध छै. बोयदाररी डाब छ. कसमल सूतरी लपेटी जामकी छै. रूपरी बनातरी मुखमलरी कुदारे पीदी वरण रही छ. सुइया सांकळी रूपैरा चमकनै रह्या छ. सात-सात विलंदारी लांबी खोळी मेरण कपड़रीस बाहर काढज छ. जाणं बादळ मांह वीज नीसरी, पाकासरी, कना तीज र तमासै मारू पातळी कामणी पोसाख कर नीसरी, इण भांतरी बंदूकां मोटवार तिरता-तिरता लेय उग घड़नांवां पाया छै. . तठा उपरायंत जांगड़ियांनै हुकम हवै छै. सू भजन ख्याल गाव छै. माता हाथी गजराज पटाझर ज्यू झोला खावै छ. सहनायची सहनायां मांहे सारंग वगायो छ. तठा उपरायंत सिरदारां देसौतां । नळावमें लणरो हांस करै छै. लाल लांगीरो पोतां पहरजै छ. घड़नांवा वणायज छ. सू लै तळाव में वड़जैछे. हासो-तमासो कर रह्या छै, माथा जड़ा केसांरा छटा छै. सू किसा नजर त्रावै । 'गिलोला किरण भांतरी छ ? घण सींग लकड़ोरी जोड़ी, पणी पय सरेसरी पचायी, कमाणरै घाटरी, दांतरां मोगरां लागां थकां घरगी सोनरी हळरी लिखी जंगाळी रंगरी, नवे चढ़ावरी तांत, रेनमैरो मेदान गूथियां थकां. राजानां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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