Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 41
________________ खीची गंगेव नीबावतरो दो-पहरौ पाप-प्रापरा घोड़ानू देसौत बाफतारी चादरांसू पवन कर रह्याछै. इहकनै रह्या छ.टीटोड़ी टहकने रहीछ. जळ-काग गुटकनै रह्या छै. मुरगाबी तिरनै रही छ. अढार भार वनस्पती झुकनै रही छ. तळावरै छेहड़ा कुवळ फूलनै रह्या छ. हजार पांवड़ा ईस छै. आठसे पांवड़ा उपळे छै. इण भांतरौ तळाव छै. घोड़ा लोह चाब रह्या छै. जीणांरी साखां-जनाखां ऊंची नाखज छै. तंग खोळा कीजै छै.. ___ सू पाडा नाळां भरियो छै, जाणे दूसरी मानसरोवर छ. तिरण ऊपर धरणा वड़ा पींपळां बोर बकायरण नींब नाळे र प्रांबा प्रांबली सीस् सरेस खेजड़ जाळ प्रासापालो खिजूर गूदी लेसड़ी केसला खिरणी मौलसिरी फरवास रायसेरण/ महवा ढाक कुभरा कीकर टूला झुकने रह्या छै. डाहळांसू डाहळा अडनै रह्या छै. छायमैं सूरज नजर नावं छ.तावड़े री कुण चलावं? आछौ सौ मेह आवै तौ पण छांट पुहचण न पावै छै... तठा उपरायंत पताखांसू बादळा छोडजै छै. सू किरण भातरा बादळा छ? हळवदरा,मोरवीरा,अंजाररा, भरवछर हालोररा छै. रूपैरी टूटी सांकळी लागी छै. घरणी सिलेहटी अटायरणमें बींटिया थका, ऊपरा बेवड़ी-तेबड़ी झालरीमें गरकाब किया थका छै. स उरण ही बादळांसू घोड़ांरा लालिया छांटजे छ. फेर बादळा खंखोळ उणहीज तळावर पाणीसू छाण भरज है उगाहीज वड़ा-पीपळारी साखांस टांगजै छै.झौटा दीजै छै. पवन खुवाय पाणी ठंढो कीजै छै. * इसी सांघरणी वनसपती मिलने रही छ. जाण दुसरी घग कै. दरखतां ऊपर मोर कुहक रह्या छै. सुवा केळ कर छ. . तूती बोल रही छ. लाल हाक मार रह्यो छै. तठा उपरायंत जाजमां गिलमांरा विछावणा हवनै रह्या है. ऊपरा गदरा. चांदरणी विछायज छै. ते ऊपर सुजनी ढाळजे छ सू किरण भांतरी छ? भड़ोछी वाफतैरी, घणं कलाबूत रेसमरं कारचोभोरै कामरी. गुजरातरे कारीगररी कीवोछ. तकिया लगा जै छै. ऊपर बगला पावस बंठा छ, स किसाहेक सोहै छै, जारणे . कलाइण कागोळड़ नाखती आवै छै. तठा उपरायंत देसौत राजान आपरा टोळी मजल रा जुवान लियां विराजमान हवा छै.कमरा खोलजै छै. वरछीरा झूला कोजे छै. सू वरछी कुण भांतरी छै. ताड़रा, बड़ पीतळरा भर तावूड़ा गजबेल दाणैरा फळ रामपुरैरा तिकारी छांहड़ी प्राय राजानांदेमौतां पागड़ा काढिया है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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