Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 30
________________ (१९) ७. वस्तु स्वभाव चंद्रमाने कुण शीतल करइ, अग्निने कुण दाह करइ । दूधने कुण धोळे छ, समुद्रने कुण हिलोळे छ । मयूर पखने कुण चितरै । लक्ष्मोने कुरण नोतरे, गंगोदक कुण पवित्र करे । हंसने गति कुण सिखावे, वृहस्पति ने कुण बंचावे । कृपणन कुण संचा। तिम सज्जनन स्वभावे जाणवो। ८. शोभा कुल बहू ते शीळे शोभ, रजनी चन्द्रमा शोभ, प्राकाश सूर्य करि शोभ, वदन चंदन शोभ, कुल सुपुत्र शोभै ! कटकइ राजा शोभ, इत्यादि । ९. न शोभे जिम लवण रहित रसवती, वचन रहित सरस्वती, कण्ठ रहित गायन, नृत्य रहित वादन, फल रहित वृक्ष, तप रहित भिक्षुक । वेग रहित घोड़ो, केस रहित मोढ़ो, वस्त्र रहित सिणगार, स्वर्ण रहित प्रलंकार । इत्यादि । १०. पणिहारी बहरांनी भीड, हुई पीड़, तुटई चौड़। एक उतार्वाळ दौड़इ छ, एक माथइ बेहड्डु चउड़इ छ, लूगडू ते माथे प्रोढई छ, वेहडू ते फोड़इ छ । एक एक नइ अडइ छ, धडाधड़ पड़इ छ-मांहो माह लड़ा छ, हवइ नानी लाडी, चीख लथी पड़इ प्राडी. बीजानी भीजइ साड़ी, ते माटे करइ राडी, सोक सोकनी करइ चाड़ी, डील जाडी, खीजइ भाडी, सासूइ पाथी ताड़ी। एक परिणहारी भमरइ छ, वातो ते करइ छ, निजर ते परइ-परइ फिरे छ, एक एक नइ हस छ, पाणी मांहे धस छ । प्रादि। ३-मुत्कलानुप्रास उपयुक्त प्रति प्राप्ति के पश्चात् दो वर्ष हए जैसलमेर के जैन ज्ञान-भंडारों का पुनरावलोकन करने के लिए जाने पर वैद्य यतिवर लक्ष्मीचन्द्रजी के संग्रह की अपूर्ण प्रतियों में १६ वीं शताब्दी के लिखे हुए पत्र प्राप्त हुए, जिनमें १०८ वर्णन लिखे हुए हैं। इनमें से कुछ वर्णन संस्कृत भाषा में हैं, पर अधिकांश राजस्थानी में ही हैं। यहां इस प्रति से भी कुछ वर्णन उद्धृत किये जा रहे हैं। प्राप्त वर्णनात्मक प्रतियों में यह सबसे प्राचीन है। १. रसवती वर्णन उपलह मालि, प्रसन्न कालि । भला भंडप निपाया, पोयणी न पाने छाया। केसर कुकमना छड़ा दीधा । मोतीना चौक पूर्या । ऊपरि पंच वर्णा चंद्रवा बांध्या, अनेक रूपे पाछी परियछीना रंग साध्या । फूलांना पगर भर्या, अगरना गंध संचर्या । धान गादी चातुरि चाकळा, बइसण हारा बइठा पातळा । सारुवा घाट, मेलाच्या प्रागलि पाट । ऊची पाडणी, झलकती कुडली । ऊपरि मेलाव्या सुविसाल थाळ, वाटा वाटली, सुवर्णमई कचोली। रूपानो सीप दूकी, इसी भांति मूकी । मादि २ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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