Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 15
________________ चौतरफ के फैलाव चौसठ जोजनके फिराव, तिसके तले सरिता, सरिजूके घाट, प्रत उतावल सूवहे, चोसर कोसों के पाट ।" गद्दबन्ध का उदाहरण-- हाथियों के हलके खभू गणाते खोले, परापत के साथी भद्रजाती के टोले । प्रत देहु के दिग्गज विन्ध्याचल के सुजाव. रंग-रंग चित्रे सुंडा डंडके बणाव । झूल की जलूस वीर घटू के ठणके, बादलों की जगमपा मेरे मेरे भोरों की भको भंणक । कल कदमू के लंगर भारी कनक की हूंस, जवाहर के जेहर दीपमाला की रूस । बचनिका के दो प्रकार"दोय भेद बचनकारा एक पदबंध दूजी गदबंध, सू पदबंध दोय भेद एक तो बारता दूजी बारता में मोहरा राखणां । दोय गदबंध वचनका है.एक तो माठ मात्रारो पद हुई, दूजी गदबंध में बीस मात्रारो पद हुदै.-" ___टोकाकार ने इसके विशेष विवरण में लिखा है कि ये यचनिकाए दवावत के ही भेद मालूम होते है। इतना-सा भेद मालूम होता है कि वचनिका कुछ लंबी और विस्तृत होती है और 'गद्दबंध' में तो कई छन्दों के जोटे अर्थात् युग्म वचनिका रूप में जुड़ते चले जाते हैं। इसके बाद पदबन्ध का जो उदाहरण दिया गया है, उपयुक्त नहीं मालूम देता । दूसरे उदाहरण का ही कुछ अंश यहां दिया जाता है-- 'तिरण सभा में श्रीमुख वाणी, लिखमरणजी तारीफ प्राणी । प्रातो साराही जाण पाई, इण बल रावणसू जीता ने सीता पाई॥" गद्दबन्ध वचनिका-- "चक्री विचाल, रघुवर विसाल, अँपे जरूर, सुण भरथ सूर, हणमंत एह, इण गुण प्रछेह, सेवा सुसेव किनी कपेस । वे कहूं बैरण, सुरण विगत संण, पंचवटी प्रीत रहतां सुरीत, उरण ठौम प्राय अवसारण पाय, प्रासुर अभीत तिण हरी ।" गद्दबद्ध वचनिका के दूसरे भेद को सिलोकों की संज्ञा दी है-- "बोले सीतापंत इसडी जी बाणी, सुरनर नागाँ नै लग सुहाणी । संसाजल हणमंत जिम ही सरसाई, बीरां अंबरारी कीधी बढ़ाई।।" उपयुक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि संस्कृत गद्यकाव्यों की अपेक्षा राजस्थानी गद्यकाव्य की व्याख्या में अन्तर है । राजस्थानी गद्यकाव्य में तुक मिलाने का ध्यान रखा गया है। हिन्दी में भी कविवर वनारमीदासजी आदि की वर्तनका--संगत रचनाए मिलती हैं, उनमें तुक नहीं मिलती। साधारण गद्य और विवेचनात्मक टीका ही हिन्दी में वचनिका मानी गयी है। राजस्थानी में वह तुकान्त-प्रधान है।। १ रघुनाथरूपक में वचनिका और दवावंत के जो भेद बताये गये है उनके नामों में थोड़ा उलटर हो गया है, गद्यबद्ध को पद्यबद्ध और पञ्चबद्ध को गद्यवद्ध कह दिया गया है । टीकाकार ने जो टिप्पणियां दी हैं वे भी भ्रांतिपूर्ण हैं । शुद्ध विवेचन इस प्रकार है।। वचनिका के दो भेद हैं-(क) पद्यबद्ध ( या पदबद्ध ), जिसमें मात्रामों का नियम होता है। इसके दो भेद होते हैं-(१) जिसमें पाठ-पाठ मात्राओं के तुक-युक्त गद्य-खंड हों, और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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