Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01
Author(s): Narottamdas Swami
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 10
________________ निवेदन प्रस्तुत ग्रन्थ में प्राचीन राजस्थानी साहित्य की तीन महत्वपूर्ण रचनामों का संग्रह किया गया है । इनमें प्रथम दो अर्थात खीची गंगेव नींबावतरो दोपहरो और रामदास वैरावतरी प्राखड़ीरी वात बहुत प्रसिद्ध और लोकप्रिय रचनायें रही हैं और राजस्थानी कहानी-संग्रहों में स्थानस्थान पर उनकी प्रतियां मिलती हैं । खीची गंगेव नींबावतरो दोपहरो' एक सुन्दर गद्य-काव्य है जिसके काव्यमय वर्णनों की छटा निराली है और सहृदय को प्रभावित किये बिना नहीं रह सकती । इसमें खीची-वंशीय नींबा के पुत्र गंगेव या गंगा की और उसके साथियों की एक दिन की दिनचर्या का वर्णन है । दुपहर का वर्णन प्रधान होने से इसका नाम दोपहरो या बे-पहरो है । उत्तर-मध्यकालीन राजपूत सामंत के जीवन और रहन-सहन पर इससे अच्छा प्रकाश पड़ता है। दूसरी रचना में मारवाड़ के राव रिड़मल (रणमल) के पुत्र वैरा के पुत्र रामदास राठौड़ का वर्णन है । रामदास अपने समय में नामी वीर हुा । इस 'वात' में उसके १९ विरुदों और ८४ पाखड़ियों का उल्लेख किया गया है । अन्त में उसके पराक्रम की एक कथा भी दी गई है । 'पाखड़ी' का अभिप्राय 'न करने की मानता' (मनौती) से अथवा शपथ या सौगन्ध से है। रामदास ने इन चौरासी बातों के न करने की मानता ले रखी थी। इन विरुदों तथा पाखडियों से जीवन के प्रादर्श का चित्र खड़ा हो जाता है। तीसरी रचना 'राजान-राउत रो वात-वरणाव' में विविध प्रकार के विविध अवसरोपयोगी वर्णनों का विस्तृत संग्रह है । कथानों के कहने वाले (और लेखक) कथा कहते समय स्थान-स्थान पर ऐसे वर्णनों का उपयोग करते आये हैं । जैनों के प्राचीन आगम ग्रन्थो में इस प्रकार के सुन्दर वर्णन प्राये हैं । मैथिल विद्वान ज्योतिरीश्वर ने पंद्रहवीं शताब्दी में वर्ण-रत्नाकर नामक ग्रन्थ की रचना की जिसमें कथा के विविध प्रसंगों और अवसरों के वर्णन संहीत हैं । संस्कृत के कवि-शिक्षा नामक ग्रन्थ में भी काव्य के विविध प्रसंगों और विषयों के वर्णन में किन-किन बातों का वर्णन करना चाहिए यह बताया गया है। राजस्थानी में वाग्विलास नाम से अनेक संग्रह प्रथवा कथाकाव्य तैयार हुए जिनमें विविध प्रसंगों और विविध प्रवसों के वर्णनों को संकलित किया गया। जिनमाणिक्य सूरि का पृथ्वीचंद्र चरित्र अपर नाम वाग्विलास (संवत् १४७० के लगभग) इस प्रकार का सुन्दर कथा-काव्य है जिसके विविध वर्णन बडे ही भावपूर्ण हैं । 'वात-वरणाव' उसी परंपरा की रचना है। रचना प्राचीन नहीं है, पर वर्णन प्राचीन है । ऋतु-वर्णन में महाकवि पृथ्वीराज राठौड़ की 'क्रिमन-रुकमणीरी वेलि' का प्रभाव है, वह वेलि के पद्यों का गद्यानुवाद-सा ही जान पड़ता है। 'दोपहरो' के वर्णनों के साथ भी उसका पर्याप्त साम्य है । इस वात-वणाव' के वर्गन-संग्रह में उक्त अन्यान्य ग्रन्थों के वर्णन-संग्रहों से एक विशेषता है। उन ग्रन्थों में जहां वर्णनों का केवल संग्रह-मात्र है वहां 'वात-बगगाव' में उनको एक क्रमबद्ध कथा के रूप में ग्रथित कर दिया गया है, जिससे यह केवल वर्णनों का संग्रह न रह कर एक सुन्दर कथा-काव्य बन गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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