Book Title: Pratikraman Vidhi Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh

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Page 10
________________ पहला परिच्छेद ११) उपोद्घात "प्रतिक्रमण" आवश्यक का एक अध्याय है, पर छह आवश्यकों में इसकी प्रधानता होने से “षडावश्यकों' का भी "प्रतिक्रमण" नाम से उल्लिखित किया जाता है, अतः हम भी इस प्रबंध के षडावश्यक सम्बन्धी होने पर भी इसका नाम "प्रतिक्रमण विधिसंग्रह" रखना उपयुक्त समझते हैं.. आवश्यक सूत्र के कर्ता . "नंदी तथा “पाक्षिक" सूत्र आदि में आवश्यक सूत्र के लिए निम्न प्रकार के उल्लेख मिलते हैं- . . “से आवस्सए छविहे पन्नत्त . तंजहा-सामाइयं १, चउव्वीसत्थरो २, वंदणयं ३, पडिक्कमणं ४, काउस्सग्गो ५, पच्चक्खाणं ६," ... अर्थात--वह आवश्यक छह प्रकार का कहा है, जैसे-सामायिक १ चतुर्विंशतिस्तव २, वंदनक, ३, प्रतिक्रमण ४, कायोत्सर्ग ५ प्रत्याख्यान ६। आवश्यक सूत्र के कर्ता के सम्बन्ध में अनेक स्थलों में आवश्यक शु तस्थविरकृतं" ऐसे उल्लेख मिलते हैं, तब क्वचित् इसे “गणधर प्रणीत होना भी सूचित किया है। प्रथम तथा अन्तिम तीर्थङ्करों

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