Book Title: Prashna Vyakarana Sutra
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 13
________________ . हास्य-त्याग . २५७ [12] ************************************************************* संवर नामक दूसरा श्रुतस्कन्ध क्रमांक पृष्ठ क्रमांक अहिंसा संवरद्वार नामक प्रथम अध्ययन | १०७. चौथी भावना-भय-त्याग ८८, अहिंसा भगवती के साठ नाम २०५ | १०८. पाँचवीं भावना-हास्य-त्याग २४७ ८९. अहिंसा की महिमा २०९ | १०९. उपसंहार ९०. अहिंसा के विशुद्ध दृष्टा.. | दत्तानुज्ञात नामक तृतीय संवरद्वार ९१. आहार की अहिंसक-निर्दोष विधि २१८ | ११०. अस्तेय का स्वरूप . .. २५१ ९२. प्रवचन का उद्देश्य और फल २२३ १११. व्रत विराधक और चोर २५५ ९३. अहिंसा महाव्रत की प्रथम भावना २२३ | ११२. आराधक की वैयावृत्य-विधि ९४. द्वितीय भावना-मन-समिति २२४ | ११३. आराधना का फल ९५. तृतीय भावना-वचन-समिति २२५ / ११४. अस्तेय व्रत की पाँच भावनाएँ, २६० ९६. चतुर्थ भावना-आहारैषणा समिति । २२६ | ११५. प्रथम भावना-निर्दोष उपाश्रय . , २६१ ९७. आहार करने की विधि २२८ | ११६. द्वितीय भावना-निर्दोष संस्तारक ९८. पंचमी भावना-आदान निक्षेपण समिति २२९ | ११७. तृतीय भावना-शय्यासत्यवचन नामक द्वितीय संवरद्वार ___परिकर्म वर्जन . ९९. सत्य की महिमा २३२ | ११८. चतुर्थ भावना-अनुज्ञात भक्तादि १००. सदोष सत्य का त्याग . २३८ | ११९. पाँचवीं भावना-साधर्मिक विनय १०१. बोलने योग्य वचन १२०. उपसंहार २६६ १०२. भगवतोपदेशित सत्य ब्रह्मचर्य नामक चतुर्थ संवरद्वार महाव्रत का सुफल | १२१. ब्रह्मचर्य की महिमा २६८ १०३. सत्य महाव्रत की पाँच भावनाएं ____ २४३ | १२२. ब्रह्मचर्य की ३२ उपमाएँ २७१ १०४. प्रथम भावना-बोलने की विधि २४३ | १२३. महाव्रतों का मूल १०५. दूसरी भावना-क्रोध-त्याग १२४. ब्रह्मचर्य के घातक-निमित्त १०६. तीसरी भावना-लोभ-त्याग - २४५ / १२५. ब्रह्मचर्य-रक्षक नियम . २७६ २६४ २६५ २७३ २७५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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