Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 14
________________ विषय परिचय प्राचार्य प्रभाचन्द्र विरचित प्रमेयकमलमार्तण्ड ग्रंथ के राष्ट्रभाषानुवाद का यह तृतीय अंतिम भाग पाठकों के हाथों में सौंपते हुए संकल्प की पूर्ति के कारण चित्त प्रसन्न है । मूल संस्कृत ग्रन्थ बारह हजार श्लोक प्रमाण विस्तृत है अतः इसको तीन भागों में विभक्त किया, प्रथम भाग सन् १९७८ में प्रकाशित हुआ, द्वितीय भाग सन् १९८१ में प्रकाशित हुआ, अब यह तृतीय भाग सन् १९८४ में प्रकाशित हो रहा है। तीनों भागों में समान रूप से ही [ चार चार हजार श्लोक प्रमाण ] संस्कृत टीका समाविष्ट हुई है । इस तृतीय भाग में करीब २५ प्रकरण हैं इनका परिचय यहां दिया जारहा है। सामान्य स्वरूप विचार : प्रमाण का वर्णन पूर्ण होने के अनंतर प्रश्न हुआ कि प्रमाण के द्वारा प्रकाशित होने वाले पदार्थ किस प्रकार के स्वभाव वाले होते हैं ? अर्थात् जगत् के यावन् मात्र पदार्थ वस्तु तत्व या द्रव्यों में कौन से गुणधर्म पाये जाते हैं ? इस प्रश्न के समाधान स्वरूप माणिक्यनन्दी प्राचार्य ने सूत्र रचा-"सामान्य विशेषात्मा तदर्थो विषयः" सामान्य और विशेष गुणधर्म वाले पदार्थ होते हैं वे प्रमाण के द्वारा प्रकाशित होते हैं । प्रत्येक पदार्थ अनुवृत्त प्रत्यय [ यह मनुष्य है यह भी मनुष्य है इस प्रकार का प्रतिभास ] वाला एवं व्यावृत्त प्रत्यय [ यह इससे भिन्न है इसप्रकार का प्रतिभास ] वाला होता है, अनुवृत्त प्रतीति से सामान्य धर्म और व्यावृत्त प्रतीति से विशेष धर्म सिद्ध होता है। __ पदार्थ के पूर्व आकार का त्याग एवं उत्तर आकार की प्राप्ति तथा उभय अवस्था में स्थिति [ ध्रौव्य }देखी जाती है अत: पदार्थ सामान्य और विशेष धर्म युक्त हैं । वस्तु का सामान्य धर्म दो प्रकार का है तिर्यग् सामान्य और ऊर्ध्वता सामान्य । अनेक वस्तुओं में होने वाले सादृश्य को तिर्यग् सामान्य कहते हैं, जैसे खंडी मुडी प्रादि अनेकों गायों में गोपना सदृश है। पूर्व और उत्तर काल में होने वाली पर्यायों में जो एक द्रव्यपना है वह ऊध्र्वता सामान्य है, जैसे स्थास, कोश, कुशूल प्रौर घटादिरूप पर्यायों में एक मिट्टी द्रव्य व्यवस्थित है। पर्याय विशेष और व्यतिरेक विशेष ये दो विशेष धर्म के भेद हैं । एक द्रव्य में क्रमशः होने वाले परिणाम पर्याय विशेष हैं जैसे-पात्मा में क्रमशः हर्ष और विषाद होता है। विभिन्न पदार्थों के विसदृश परिणाम को व्यतिरेक विशेष कहते हैं, जैसे-गौ और भैंस में विसदृशता है। इस प्रकार पदार्थ सामान्य विशेषात्मक प्रतीति सिद्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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