Book Title: Prakrit Chintamani
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 57
________________ ५२ प्राकृत चिन्तामणि क्रियातिपत्तौ। ३. ३. ३६ । बी० हरिति । पितुर्ज प्रस्मय से पूर्व भू को है विकल्प से कौ० क्रियातिपत्तौ सर्वपुरुष वचनेष्विवादे र्जा होता। भू-ह-न्ति, न्ते-हुन्ति, ते पक्षे होन्ति ज्जो वा स्तः । पक्ष-माणन्तो। ३, ३, ४० हज्जा इत्यादि । हवेज्ज । हबमाणो हवसाणा हवन्तो हवन्ता गिवादेश्चाजन्ताद । ३, ३, ३८ । इत्यादि । आर्षे हवमा उनले इत्यादि । पनि को० अजन्तादिबादस्तत्पूर्वं च ज्जा जो बा स्तो सुवृष्टिरभविष्यत्तदा सुभिक्षमभविष्यत् -- जइ सुविट्ठी हवेज्जा तथा सुभिक्खं हवेज्ज । यदि शुक्ल वर्तमान भविष्यविध्यादिगु । वर्तमाने । होज्जाइ होज्जइ होज्जा होज्ज । पक्ष होइ। एवं सर्वत्र । ध्यानमभविष्यत्तदाकल्याणभविष्यत् = जइ सुक्क विध्यादौ । होज्जाउ होज्जे उ होज्जउ होज्जा होज्ज उमाणं हवेमाणं तया कल्लाणं गवन्तं । एवं सर्वत्र होउ इत्यादि । भविष्यति हाज्जाहिइ होज्जेहिइ हुवहसादय:। होज्जा होज्ज पक्ष होउ इत्यादि । दो० क्रियेति । क्रिमातिपति अर्थात् कार्यकारणभावादि दी० प्राप्ति । वर्तमान भविष्यत् तथा विध्यादि अर्थो में अर्थ भाले मादि के स्थान में त्रिवल्प से ज्जा-ज्ज ये दो दाज़न्त घातु ग पर इवाशादेशों के स्थान में तथा इवादि आदेश होते हैं। पक्ष में माण त ये दो आदेश भी होते से पूर्व ज्जा तथा ज्ज ये दो विकला से होते हैं। होहैं । इन् अ-इचादि =F० मू० जा--ज्ज ३.३, २० ए......पक्षे माण–प्त = सृ--जस् आदित३, १,१४,४ . .- सू० होज्जाइ होगजेइ होज्जइ एवं होज्जा होज्ज स्वादि कार्य हुने जा वेज्ज । हवभाणो हवमाणा हवन्तो पक्ष होइ एवं सर्ववचनों में समझना। विध्यादि में हो इत्यादि इसी तरह हलन्त हुब. - हस् देष आदि के वर्तमान - होज्जाव हारजे होज्ज होज्जउ होज्जा होज्ज दि क्रियापत्ति पर्यन्त में रूप हव यत् होते हैं। भू= = पक्ष होस एवं राबं वरना म । भविष्यत् काल में-होहो । हिह होज्जाहिद हाज्मिहि होउहि होज्जा हात अत एव सयेपौ। ३,३,७।। पक्ष होहि इत्यादि सर्ववचनों में समझना चाहिये। कौ० अदन्तादेव परी से एपो भवता नान्यस्मादिति अनतोऽचो बा । ३, ४, ३१ । नात्र एव । अदन्तात्से एपावे व नतु सि--इपौ इति कौ० अदन्तवर्जाद जन्तात्परोऽकाराममो वा स्यात् । विपरीत नियम निषेधार्थ मेत्रकारः । तेन हससि इत्याकारपो होअइ होएइ हाअए इत्यादि सर्वत्र हसइ इत्याद्यपि। हववत् । बी० अतइति । अदन्त है। से पर तथा एप ये पो होते हैं। दो० अनेति । अदन्त वर्ज अजन्तं धातु से पर अकार आगम अदन्त भिन्न में नहीं अतः यहाँ एप नहीं हुआ। से एप ही विकल्प से होता है। हो-अ-इ ३, ३, २१ झ---एअदन्त में होता है। सिइप नहीं। इस प्रकार का नियम हए होअद्द इत्यादि सर्वत्र ववत् ॐ करें पक्ष में होइ न हो अतः एयकार है । अत: इसइ हससि भी होता है। इत्यादि । हुरपिलि । ४, १, ३ । अन: सी हो हो आः । ३, ३, २५ । कौ० पिदर्जे प्रत्यये परे भू धातोह वा स्यात् । हुन्ति कौ० अजन्ताद्धातोः परेषामिवाद्यादेशानां स्थाने हुन्ते इत्यादि । पक्ष होन्ति होन्ते होइरे। होमि। इमे त्रयः स्युः भूते । होसी होही होहीम। अभवत्, उक्त नियमान से। होइत्था हुइत्या होह हुह । होमु अभूत् बभूवेत्यादिरर्थः । आर्षे हो होत्था हो । होमो होम, हुम हुमो हम । त्रिध्यादिषु होउ। होन्तु, क्रियातिपत्ती-होज्जा होज्ज होमाणो होन्तो हुन्तु । होहि होसु । अनदन्तत्वात्-अतो ज्जे–३, इत्यादि । ३.२६ इति न स्यात् । होह हह । होमुहोमोदी अचति । अजन्त धास से पर श्वाधादेश के स्थान

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