Book Title: Prakrit Chintamani
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 59
________________ ५४ | प्राकृत चिन्तामणि सिना सिः । ३,३,६ । कौ० सिना सहास्तेः सिः स्यात् । सि तुमं । असि त्वम् बी० सिनेति । सि सहित अस् को सि होता सि | बासि वा मिमो में म्हि हो महाः । ३, ३,१० । कौ० तिङादेशैरेतैः सहास्तेः स्थाने क्रमादेते वा स्युः । अहं हि । अहमस्मि । अम्हे म्हो, अम्हे म्ह । वयं स्मः । बी० वामिति । तिङादेश मिमोम सहित अस् के स्थान में क्रम से म्हि म्हाम्ह आदेश विकल्प से होते । मस्मिहि । २, ३, ५३ से स्म को हो म्हय विद्वास्से करके हो म्हा बन सकता है तो भी विभक्ति विधि से मे साध्यावस्था मानी जाती अन्यथा - जिना - जिनेन जिनेसु आदि सिद्ध से २, १. ३२ जिया आदि हो सकता है। उसके लिये सूत्र व्यर्थ हो जायगा । तदन्तस्यास्ते राज्य हेसी । ३, ३, २६ । कौ० भूतार्थप्रत्ययान्तस्यास्तेरिमौ स्तः । असि सो ते तुमं तुम्हे अयं अम्हे वा । एवं-- अहेसि । वी० [तदेति । भूतार्थं प्रत्ययान्त अस् के स्थान में आसि तथा अहेसि ये दो आदेश सर्वपुरुष वचनों में होते हैं ।

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