Book Title: Prakrit Chintamani
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 82
________________ ॥ अथापनश प्रकरणम् ।। अचामचःप्रायोऽपभ्रशे । ५, ३,१। वी० समिति । अपनशे संबोधन में नाम से पर जस के कौ० अपभ्रशेऽचां स्थानेऽचः स्युः प्रायः। कच्चित् स्थान में हो होता है। *कच्चु कच्चा । तण-तण तिण इत्यादि हि भिस्सुपः । ५, ३, ५ । आसमाप्ते रयमधिकारः। अतोऽस्य सूत्रस्य सर्वत्र कौ० अपभ्र' भिस्सुपोहिं स्यात् । 'सुपिदीर्घ ह्रस्वा' वित्यस्य च सुबन्ते प्रयोगानुसार वी० हिमिति । अपभ्रश में नाम से पर भिस्-सुप् के प्रवर्तनादपध्र'शे प्राय: सर्वे प्रयोगा अव्यवस्थिता स्थान में हिं होता है। एव भवन्ति। अतः स्वमोफत् । ५, ३, ६ । वी० अनामिति । अचों के स्थान में प्रायः अच् होता है। कौ० अपभ्रशे स्वमोरुत् उत्वं स्यात् । जिणु । जिनो कच्चित्-१, १, २८ तलुप-प्र० स० क-का- जिनं वेत्यर्थः । धि-च्च =काच्च, बुकच्चु । तृण-सु-तृत दी० अत इति । अपन'स में सु तथा अम् से पूर्व अ को उ ति ५, ३, ६ =णु ३, सु लुप् = सणु तिणु । होता है। जिन-सुबम् =प्र. सू० ननु ३ सु= समाप्ति तक इस सूत्र का अधिकार है । अतः सर्वत्र इस अम् लुप् २, १, ३२ नु=णु=जिण। सूत्र तथा सुबन्त में उत्तर सूत्र की प्रयोगानुसार प्रवृत्ति वा पुस्योत्सौ । ५, ३, ७ । होने से अपभ्रश में सभी प्रयोग प्रापः अव्यवस्थित ही मयत औद्रा स्यात । जिणो । अपसि होता है। तु जलु फलु । जश्शसो:-जिणो। जिना जिनान्दा। सुपिवीर्घ हल्यौ । ५, ३,२। हे जिणो हे जिणु हे जिणहो । को अपनी सुपि परे नाम्नोऽचः प्रायोदीर्घ दी वेति । अपभ्रश में पूर्व अ को 3 विकल्प से होता है। जिण-सुप्र० म०णगो ३ सुलुप्ह्रस्वोस्तः। जिणो। सि कपन से नपुंसक में नहीं होता है-जल वी० सुपीति । अपनन में नाम के अच् को प्राय: दीर्घ फल-सुजलु फलु । जिण-जस्-शस् २ सू० ग पल तथा ह्रस्व होता है। णा ३ जस्-शस्-लुप्-जिणा। हे जिणा-मु= स्वम्नश्शङसामा लुप् । ५, ३, ३। पूर्ववत् =जिणो जिणु। हे जिण-~-जस=होहे जिणहो । को० अपभ्रंशेविभक्तोनामासां लुप्स्यात्।। टायामेन्टश्चणचन्द्रौ। ५, ३, । दी. स्वमिति | अपभ्रंश में सु-अम्-जस् --शस् को अपभ्रंशे टायामत एत्स्याट्ट यास्तु णानुस्वारी। जिनेन-जिणण जिणे। स्--आम् को सुप होता है। वी० अपभ्रश में टा से पूर्व अको ए तथा टा को ण और सम्बोधने जसो होः । ५, ३, ४।। चन्द्र ये दो आदेश होते है। जिण-टा=प्र० सू० प= को अपभ्रंशे सेबोधने नाम्मःपरस्य जसो हो स्यात। णे-टाण-जिणेण । चन्द्र =जिणे ।

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