Book Title: Prakrit Chintamani
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 75
________________ ७० | प्राकृत चिन्तामणि वी. अत इति । शौरसेनी में अ से पर इम्-एप को दे कृगमो डुअ उदुऔ । ५, १, २६ । एवं वाद-दि ये दोनों होते हैं । रम्-अ (३, ४, ३०) को शौरसेन्यामाभ्यां क्वः स्थाने प्रत्येकमेती वा प्तिक-३, ३, १, इप्–एप् प्र० स० दि-देरमदे स्तः । कृत्वाकडुअ कदुअ । करिय करिद्रण । रमदि। गत्वा=गच्छिम गच्छिद्ण । एष्यति हेः हिसः । ५, १, २४ । को० शौरसेम्या भविष्यदर्थस्य हेः स्सिः स्यात् । वो. कृगेति । शौरसेनी में कृ—ाम से पर क्त्वा के स्थान भविष्यति होहिइ होस्सिदि । में बम सदुम प्रत्येक आदेश होता है। -स्वा।अय तिङन्त प्रक्रिया। प्र० सू० त्वाअडम- प्रदुअ-टिलोप = कडुअ कटुअ । गम् -३, ४, ६, ३० गच्छ-स्वा-अडुअ अदुअ अदुब दी० एष्यति । शौरसेनी में भविष्यदर्थ में ३, ३, २७ से =गडुम गदुध । पक्षे पू० सूत्वा - इय-दूण-३, ४, विहित हि को स्सि होता है। भू-हो-ह, प्र० सू० २५ कर-करिय करि (३, ४, ३, अ-३,३, २० इ) स्सि-इ-दि-होस्सिदि । एवं वाहिद ठास्सिदि दूण एवं गच्छिप गपिछद्रण । इत्यादि । [अयकृदन्त प्रक्रिया | सिद्धमनुक्त'प्राकृतवत् । ५, १, २७ । इयदूणोक्त्वो था । ५, १, २५ । कौ० शौरसेन्यामनुक्त कार्य प्राकृतवत् स्यात् । सिद्ध को शौरसेन्यां क्वा प्रत्ययस्य स्थामे एतौ वास्तः। भूत्वा भविय हविय । भोदूण | पक्षे भोत्ता शब्दो-मङ्गलार्थः । तित्ययरो किवा आदि । होता। बी० सिति । शौरसेनी में अनुक्त कार्य प्राकृतवत् होता वी० इयेति । शौरसेनी में क्त्वा को श्य- दूण ये दो आदेश है। पथा-कृपा-१,२,२६कृ-कि २,१,४२ पाहोते हैं। भू-हो-हवभव ६ वा–भो-त्वा-दूण वा-किवा । तीर्थकर-सु-१,२,३६ ती=ति २, ३, =भोद्रण, होगुण भविय हविय । पजे-रखा २, ३,६८, ६८.७५ र्थ-स्थ२,२,१,३क-य३,१,१४ सु७४ ता । भोसा होता। ओड-तिस्थयरो आदि । । इति शौरसेनी भाषा समाप्ता।

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