Book Title: Pragnapana Sutra Part 03
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 14
________________ + णमोत्यु णं समणस्स भगवओ महावीरस्सक श्रीमदार्यश्यामाचार्य विरचित प्रज्ञापना सूत्र .. (मूल पाठ, कठिन शब्दार्थ, भावार्थ और विवेचन सहित) - भाग -३ तेरसमं परिणामपयं तेरहवाँ परिणाम पद उक्खेओ (उत्क्षेप-उत्थानिका) - अवतरणिका - तेरहवाँ 'परिणाम पद' है। परिणाम शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए टीकाकार ने लिखा है - .. "परि समन्तात नमनं परिणामः"। अथवा परिणमनं परिणामः कथञ्चित अवस्थितस्य वस्तुनः पूर्व अवस्था परित्यागेन उत्तरावस्थागमनम्, परिणामो हि अर्थान्तर-गमनं न च सर्वथा व्यवस्थानम्। न च सर्वथा विनाशः, परिणामस्तद्विदामिष्टः॥ अर्थ - परिणाम शब्द में 'परि' 'उपसर्ग' है और 'नम्' धातु है। इससे 'परिणाम' शब्द बनता है। जिसका अर्थ टीकाकार ने इस प्रकार किया है-अवस्थित वस्तु का पूर्व अवस्था को छोड़ कर दूसरी अवस्था को धारण कर लेना परिणाम कहलाता है। यही बात टीकाकार ने श्लोक रूप में कही है यथा कि पूर्व अवस्था को छोड़कर दूसरी अवस्था को धारण कर लेना परिणाम है किन्तु वस्तु का सर्वथा विनाश हो जाना परिणाम नहीं है। 'परिणाम' शब्द के यहाँ दो अर्थ अभिप्रेत है - १. किसी भी द्रव्य का सर्वथा विनाश या सर्वथा अवस्थान न होकर एक पर्याय से दूसरे पर्याय (अवस्था) में जाना 'परिणाम' है अथवा २. पूर्ववर्ती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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