Book Title: Prachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Author(s): Kamal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyashram Shodh Samsthan

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Page 12
________________ ( ११ ) अध्याय :४ उद्योग-धन्धे ७४-९९ आर्थिकजीवन में उद्योगों का महत्त्व ७४, औद्यौगिकश्रम ७४, उद्योगशालायें ७७, औद्योगिक पूँजी ७७, प्रमुख उद्योग ७९, १-वस्त्र-उद्योग ७९, सूती वस्त्र ८०, रेशमी वस्त्र ८१, ऊनी वस्त्र, ८१, चर्मवस्त्र ८२ वस्त्र-उद्योग के प्रसिद्ध स्थान ८३, २-धातु-उद्योग के प्रसिद्ध स्थान ८३, २-धातु-उद्योग ८५, लौह-द्योग ८५, स्वर्ण-उद्योग, ८६, रत्न-द्योग८७, ३-भाण्ड-उद्योग ८८, ४-काष्ठ-उद्योग ९०, ५-वास्तु-उद्योग ९१, ६-खांड-उद्योग ९२, ७-तेल-उद्योग ९३, ८-लवण उद्योग ९४,९-मद्य-उद्योग ९४, १०-चर्म-उद्योग ९५, ११-हाथीदाँत-उद्योग ९६, १२-चित्र-उद्योग ९७, १३-प्रसाधन-उद्योग ९८, १४-रंग-उद्योग ९८, १५-कुटोर-उद्योग ९९। अध्याय: ५ विनिमय १००-१४६ (१) व्यापार १००, व्यापारी, १०१, व्यापारिक संस्थान १०२, मापतौल विधियाँ १०६, क्रय के लिये अग्रिम धन १०९, मूल्य निर्धारण १०९, विज्ञापन १११, प्राचीन भारत के सार्थवाह १११, सार्थ का प्रस्थान ११६, आयात-निर्यात १२० । (२) परिवहन १२३, स्थल-मार्ग १२४, स्थलवाहन १२७, व्यापारिक स्थल-मार्ग १२९, जल-मार्ग १३०, जलवाहन १३२, व्यापारिक जलमार्ग १३४, वायुमार्ग १३६ । (३) सिक्के १३६, सिक्कों की निर्माण-विधि १३७, स्वर्णसिक्के १३८, रजत सिक्के १४०, ताम्र सिक्के १४२, अन्य सिक्के १४४, टकसाल १४५, सिक्कों की क्रय-शक्ति १४५ । अध्याय : ६ वितरण १४७-१६३ १. लगान १४७, २. पारिश्रमिक तथा वेतन १४९, ३. व्याज १५६, ४, लाभ १५९, वितरण का स्वरूप १६१।

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