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होय ते द्रव्य साधु जाणवा. जे भाव संवरपणे मोक्षनो साधक थइ भाव साधुनी करणी करे ते भाव निक्षेपे साधु जाणवा.
कोइ जीवनो ज्ञान एहवो नाम ते नामज्ञान तथा जे पुस्तकमां अक्षररूपे लख्युंछे ते स्थापना ज्ञान, अने उपयोग विना सिद्धान्तनो मणवो अथवा अन्यमतिनां सर्व शास्त्र भणवां तथा शरीरादिक ते सर्व द्रव्यज्ञान. अने नवतत्त्वनी नय निक्षेपाए जाणवां अने आत्मतत्त्व आदर, ते भावज्ञान जाणवू. ए आगमसारमां कईछे. शुद्ध झाननी प्राप्ति पंचमकाळमां कोइक महा पुरुषने थायछे. ज्ञानना पंच प्रकारछे. १ मतिज्ञान, २ श्रुतज्ञान, ३ अवधिज्ञान, ४ मनःपर्यवज्ञान. देवद्धि वाचक कहेछ के-पाठ, से किंतं मइनाणं दुविहं मइनाणं पन्नत्तं तंजहा सुयनिस्सियं च असुयनिस्सियं च सेकिंतं असुयनिस्सियं अमुयनिस्सियं चउविह पमत्तं तंजहा उप्पत्तिया वेणइया कमिया परिणामिया बुद्धि चउम्विहा पनत्ता.
भावार्थ-मतिज्ञान के प्रकारेछे. श्रुतनिश्रित मतिज्ञान, वीजें अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान. प्रायशः श्रुतज्ञानना अभ्यास विना सहज भयोपशमवशे जे उत्पन्न थाय तेने अश्रुतनिश्रित कहे छे ते चार प्रकारछे. उत्पादिकी धुद्धि, वैनयिकी बुद्धि, पारिणामिकी बुद्धि तथा कर्मजा घुद्धि.
पोतानी मेळे उत्पन्न थाय ते औत्पातिकी बुद्धि अने गुरूनो विनय शुश्रूषा सेवा करतां आवे ते वैनयिकी बुद्धि, कर्म करतां उपजे जे ते कार्मिकी बुद्धि अने परिणामते दीर्घकालर्नु पूर्वापर अर्थन अवलोकन करतां उपजे ते पारिणामिकी बुद्धि.
पूर्वश्रुत परिकर्मित मतिना उत्पादकालने विषे शाखार्थ पर्यालोबन करतांज जे उत्सन थाय तेने श्रुतनिश्रित मतिज्ञान कहेछ. तेना
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