Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
(३९०)
-शाम सिद्धिन्बट्र्स्थानक.
शिष्य उवाच.
भले न थावो इन्द्रियों, बुद्धि आश्रय कोइ बुद्धि आश्रय देह छे, कहुं विचारी जोइ. शरीरनाशे बुद्धिनो, नाशज थातां दीठ; भस्मीभूत शरीर तो, चेतन थाय अदीठ.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सद्गुरु उवाच .
बाल युवादिक भेद त्रण, तनुना एह प्रसिद्ध; बालदेहथी भोगव्युं, स्मृति ते तेणे लीध. तरुण तनुमां तेहनी, स्मृति कदा नहि थायः बालशरीरे भांगव्युं, कथं युवान जणाय. मृतक शरीरे बुद्धिनी, स्फूर्ति कथं न थायः माटे बुद्धयाश्रय कहो, चेतन स्मर्ता आय.
For Private And Personal Use Only
३६७
३६८
३६९
३७०
३७१
शिष्य नवाच .
बुद्धयाश्रय नदि देह तो, श्वासोश्वास जणाय; श्वास नहीं त्यां सुख दुःख. कदा न निरख्युं जाय. ३७२ श्वासोश्वासे भिन्नता, नहि ते एक स्वरूपः बुद्धयाश्रय तेने कहो, ए पण जडता कूप. ३७३ एक श्वासोश्वासथी, कीधो अनुभव जेद; अन्य श्वास स्मर्ता नहीं, बुद्धयाश्रय नहि एह. ३७४

Page Navigation
1 ... 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432