Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
घटस्थानक
सरिताओ सागरमां भळे, जिन दर्शनमां सर्वे मळे; दर्शनमांभजनाजिनघाव,अनेकान्त वाणीजगसावध६८ कर्माष्टकनो थावे नाश, आविर्भावे गुणनो भासः जन्म मरणना फेरा टळे, चेतन क्षायिक धर्मे मळे.४६९ समये समये सि अनन्त, सुख सहेजे विलसे शिवकंत; पूर्वप्रयोगे उंचाजाय, शाश्वत शिवपुरमा बिरमाय. ४७० उर्ध्व अधःति नहि जाय,किया रहित माटेस्थिस्थाया ताडक् विभुने करु प्रणाम, क्यारे पा, सुख, धाम.. ४७१ सादि अनंतिज स्थिति वरी, सिझनमुंते भाषजधरी केवलज्ञाने जाणे सहु, तेवू पद प्रेमे हुं चहुं. ४७२ चेतन परमातममां भेद, व्यवहारे जोता ए खेद; भेदभावनोज्यां नहि लेश,निश्चयनयथी जोतां वेशभ७३ उत्तमदृष्टि आत्मस्वरूप, वहेतां प्रगटे सुखचिद्रूप भणोंगणोवांचो सहु ग्रन्थ, चेतनदृष्टि शिवपुर पन्थ.५७% उत्तम दृष्टि कोइक लहे, शिवपुरमाहि सिजो वहे। ज्ञानादिक गुण लेखे होय, समभावे निरखे सहु कोय५७५ शत्रुमित्रमा समता भाव, शुद्धधर्मनो प्रगटे दावः देह सांपण देझतीत, दशातादृशी त्यांशुंभीत. ४७
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432