Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 411
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन. ( 0) धर्मरन आजे ग्रघु, देख्युं परमनिधान; शरण शरण हारु प्रभु, कोई न तुज समान. ४५१ काल अनादिथी भम्यो, पण आव्यो नहीं अन्त; सम्यक्तत्त्व जणावियुं, नमुं प्रभो गुणबन्त. ४५५ शिष्य नवाच शंकां.. अनन्तजीवो सिहता, शिवमां केम समाय; निराकरण तेनुं करो, जेथी शङ्का जाय. ४५३. उवाच गुरुः सिद्धशिलानी उपरे, शाश्वतछे शिवठाण; कर्म खप्याथी जीव त्यां, थावे श्री भगवान्. . ४५४ एकदीपकनी ज्योतिमां, अनेकदीपकज्योतः सिद्धअरूपी मावता, दोष न किञ्चित् द्योत. ४५५ चोपाइ. विषयवासना विषसम खास, त्यागो बहिरातमपदवास; शाश्वतपदनी वाञ्छा होय, तो अधिकारी धर्मे जोय.४५६ दुःखनो आत्यंतिकविनाश, मुक्ति वैशेषिकनी खास; मनने नित्यज माने तेह, मुक्तिमां जीव साथे तेह.४५७ बुझ्यादिक नवनोज्यां नाश, मुक्तिज एवी त्यांशुंआश; वृन्दावन जंबुक अवतार, तेथी सारो मानव घार ५५० For Private And Personal Use Only

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