Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 410
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org षट्स्थानक, 295) मोहिनी नाशे सर्व हणाय, नृप हार्याथी प्रजा पलाय कर्म टळयाथी शिव सुख गेह, सत्यपंथमां शो संदेह. ४४३ मतदर्शनना असत्यराग, अंधा श्रद्धा ज्ञाने त्याग. जातिलिंगमां माने मोक्ष, तेथीज मुक्ति होयं परोक्ष- ४४४ सत्यतस्वनी श्रद्धा थाय, समवायिपंचज प्रगटाय; अरूप चेतन जागे ज्योत, त्रिभुवनमां ज्ञाने उद्योत. ४४५ भवमुक्तिनी नहींछे आदि, प्रवादथी ते दोय अनादि; अनेकान्त पन्थज समजाय, श्रद्धाथी सहु मळे उपाय. ४४६ केवलज्ञानी वाणी ग्रंथ, गुरुगम समजी ल्यो शिवपंथ; एकशब्दनो भावज साच, एम कहे तीर्थकर वाच - ४४७ जीव मोक्षादि शब्दज एक, साचो माटे करो विवेक; जेनो बंधहि तेनो मोक्ष, जरा नहि त्यां लागे दोष- ४४८ शिष्य उवाच. 46 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir >> दुहा. आपे षट्स्थानक कलां, करुणाथी गुरुदेव; श्रद्धाथी में सद्दयां, टकी अनादि कुटेव. आज लगी अज्ञानथी, थइ न तत्त्व प्रतीत; नमन करुश्री सद्गुरु, कीधो शिष्य पवित्र. For Private And Personal Use Only ४४९ ४५०

Loading...

Page Navigation
1 ... 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432