Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परमात्मदर्शन.
( ४०३ )
नमुं नमुं ते वरनिग्रंथ, जेनी दृष्टि शिवपुर पन्थ; पामुं एवो सद्गुरु संग तो पामुं निजगुणनो रंग४७७
"
ताज जावे तपतां ताप, साधु संगे दहीए पाप; माटे मानो सद्गुरु आण, पामो शाश्वतपद निर्वाण. ४७८
धन्य धन्य म्हारो अवतार, ज्यारे लदिशुं शिवपुर सार; दावानल छे आ संसार, पामुं क्यारे तेनो पार• ४७९ चिंतन एवं चित्ते थशे, दोषो त्यारे अळगा थशे; आत्मध्यानमां जे क्षण जाय, क्षण ते भवमां लेखे थाय४८० देहे देहे व्यापी रह्यो, महिमा जेनो जाय न को; नामी अनामी जेने कहुं, तेने ते देखे छे लहुं. ४८१ नाही ज्यां शब्दअने ज्यां गंध देखे नहि नास्तिकजनअन्ध लां छोडयां केइक देह, पण पोते तो नित्यज तेह ४८२ जेनी आदि नहीं ने नाश, अजरामर माटे ते खास; योगी पण भोगी कहेवाय, नमुं नमुं ते चेतनराय. ४८३
जेनुं ध्यान धरतां सुख, जन्म मृत्युनां जावे दुःख; जेना गुण छे अपरंपार, नहि ज्यां जाति लिंग प्रकार . ४८४ पर्यायतणो आधार, एकरूप त्रिकाले धार; क्रमवर्ति जाणो पर्याय सहभावी ते गुण ग्रहाय ४८५
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432