Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 415
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४४) भारमसिद्धि-पट्स्थानक षड् द्रव्योमा वर्तन एम, चिंतन करतां लहिये क्षेम; शुक्लध्यान पण तेथी होय,निश्चय शास्त्रे भाख्युं जोय४८६ षड् द्रव्योमा सर्व समाय, भाखे सूत्रे श्री जिनराय; सूक्ष्मपणे जो थावे ज्ञान, स्वल्पभवे पामे शिव स्थान.८७ निश्चयदृष्टि चित्ते वहे, व्यवहारे वर्ती गुण लहे; एकान्ते चाले व्यवहार, पामे नहीं ते भवनो पार.४८८ सर्वज्ञ भाख्या नय दोय, होय न जूठो तेमां कोय; निश्चयनो हेतु व्यवहार, कारण कार्यपणुं त्यां धार.४८९ आवश्यादिक जे व्यवहार, करीये लहिये भवजल पार; जनमन रंजन किरिया करे, भाव विना ते भवमां फेरे.४९० भाव विना किरिया ले फोक, करीए समजी हरिये शोक आडं अवलू मनडुं फरे, धर्मक्रिया ते शानी करे. ४९१ चित्त न ठरतुं एकज ठाम, माटे किरियानुं शुं काम; निश्चय एमन करशो कोय,उद्यम अवलंबो सुख होय४९२ निज गुण रक्षण साचो धर्म, निजगुण विध्वंसनजअधर्मः आत्म प्रवृत्ति धर्मे वळे, निज ऋछि तो निजने मळे. ४९३ क्रिया बाह्यनी चेतन करे, कर्म ग्रही भव फरतो फरे; पाप क्रियाछे भव जंजाळ, क्रिया धर्मनी मंगलमाळ५९४ For Private And Personal Use Only

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