Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 412
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन वदे वेदान्ती मुक्ति स्वरूप, जाणो जग व्यापक विद्रयः घटेन व्यापक चैतनराय,त्यांशुंशिवनी आशरखाय५९ माने मुक्तिज आर्य समाज, भाडे पाम्यो जीवजराज; मुक्तिथी जीव पाछी फरे, मुक्ति एवीशुंदुःख हरे.४६० कर्म खम्याथी नहि संसार, कथं जीव पामे अवतार; जन्म मरण ज्यां वारंवार, शान्ति तेनी नहीं लगार.४६१ एक कह छे मुक्ति स्वरूप, मोटो अंधारानो कूप; जाकुंजे ईश्वरनी पास, चित्त घरो ईश्वर विश्वास-४६५ विश्वासी ईश्वरना दास, मुक्तिफोजमां भळतां खास; इशु भलो ईश्वरनो पुत्र, ते चलवे छे जगनुं सूत्र. ५६३ शरीरधारी मुक्तिज ज्याय, जन्म मरणना फेरा त्यांय; मुक्ति तेवीज कदीन होय, साक्षरवादी ग्रहे न कोय.४६५ अंधो वनमा फरतो फरे, पण चाली पहोंचे नाहे घरेः. ज्ञानचक्षु हृदये प्रगटाय, मुक्ति पन्थ त्यारे देखाय. ४६५ कोइक राता छे व्यवहार, ज्ञाने राता कोइकधार; एकएकर्नु खंडन करे, पक्षापक्षेज लडी मरे. ४६९ एकान्तनयोथी पक्षापक्ष, सत्यज माने बे नय दक्ष, नय एकेके दर्शन थयां, सापेक्षे ज्ञानिए ग्रह्मां. ४६७ For Private And Personal Use Only

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