Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 409
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१९८) भारमसिदि-पट्स्थानक. शिष्य शंका. मोक्षतणी जे अस्तिता, तेतो समजी जाय; अनन्तभवनां कर्मनो, ध्वंस न क्यारे थाय. ४३५ भिन्न भिन्न दर्शन कथे, मुक्ति अनेक उपाय; सत्य असत्य तेमां कयु, निर्णय चित्त न थाय. ४३६ को वेषे कइ जातिमां, कया पन्थमां मोक्ष; निश्चय तेनो नहि बने, तो शी करवी होश. ४३७ भव प्रथम के मुक्तिवा, प्रथम जीव के सिद्ध इत्यादिक मन चिंतता, मोक्ष न होय प्रसिद्ध. ५३८ उवाच सद्गुरुः चोपाइ. ज्ञानक्रियाछे मोक्षोपाय, सूत्रे भाखे श्री जिनरायः आमिकणाथी, गंजीबळे, तथा ध्यानथी कल्मष टळे.४३९ जेने लाग्यो जन्मथी रोग, औषधयोगे थाय निरोग; कीधां अनन्तभवनां कर्म,नष्ट थतां प्रगटेशिवशर्म.४४० अंधारु जग व्यापी जाय, थातां सूर्योदय विणसाय; सत्य ज्ञान त्यां शोछे भार, कर्मतणोतुं हृदये धार. ४४१ ज्ञानावरणीयादिक आठ, कर्मतणोछे सूत्रे पाठ; मुख्य मोहिनी सहुमां होय, यथा प्रजामांनृपति जोय. For Private And Personal Use Only

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