Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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षट्स्थानक.
Anmom
४११
( ३५६) शाथी ईश्वर प्रेरणा, ईश्वरना अन्यायः न्यापी अपराधी सहु, ईश्वर पोते थाय.
शिष्य उवाच शंका कर्म करेछे प्राणिया, सामग्री अनुसार, सुख दुःख ईश्वर आपतो, जीव अकर्ताधार. ४२०
गुरुः उवाच. कृत्य करे ते भोगवे, पोते सुखने दुःखः खावे तेहं धरायछे. प्रभु न भागे भूख. क्षेपे निजकर वन्हिमां, ज्वलतो देखे हाथ. स्वयंहि कर्ता जीवछे, कथं प्रेरणा नाथ; ४२५ अवळी बुद्धियोगथी, विषभक्षणथी नाश; प्राणोनो जाणो अहो, ईश्वर न्याय न खास. ४५३ स्वयमेव ज्यां सुख दुःख, चेतन कर्मे पाय; ईश्वर प्रेरण कल्पना, सुख/दुःख कर्मे थाय. ५२४ सदा असंगी आतमा, निश्चय सत्ता लेख; व्यवहारे सुख दुःखनो, कर्ता चेतन देख. ४२५ जीव अकर्ता कर्मना, नाशे सत्य जणाय; वेतन जाणो नयथकी, शुद्धधर्म प्रगटाय. ४२६
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