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-शाम सिद्धिन्बट्र्स्थानक.
शिष्य उवाच.
भले न थावो इन्द्रियों, बुद्धि आश्रय कोइ बुद्धि आश्रय देह छे, कहुं विचारी जोइ. शरीरनाशे बुद्धिनो, नाशज थातां दीठ; भस्मीभूत शरीर तो, चेतन थाय अदीठ.
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सद्गुरु उवाच .
बाल युवादिक भेद त्रण, तनुना एह प्रसिद्ध; बालदेहथी भोगव्युं, स्मृति ते तेणे लीध. तरुण तनुमां तेहनी, स्मृति कदा नहि थायः बालशरीरे भांगव्युं, कथं युवान जणाय. मृतक शरीरे बुद्धिनी, स्फूर्ति कथं न थायः माटे बुद्धयाश्रय कहो, चेतन स्मर्ता आय.
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शिष्य नवाच .
बुद्धयाश्रय नदि देह तो, श्वासोश्वास जणाय; श्वास नहीं त्यां सुख दुःख. कदा न निरख्युं जाय. ३७२ श्वासोश्वासे भिन्नता, नहि ते एक स्वरूपः बुद्धयाश्रय तेने कहो, ए पण जडता कूप. ३७३ एक श्वासोश्वासथी, कीधो अनुभव जेद; अन्य श्वास स्मर्ता नहीं, बुद्धयाश्रय नहि एह. ३७४