Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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परमात्मदर्शन.
आ क्षणमां जे आतमा, ते क्षण विणशी जाय; पुण्य पाप सुख दुःखनी, घटना कहो शीथाय. ३९३. अन्य करने अन्यने, पुण्य पाफ्नो बन्ध; अन्यतणो जो मोक्षतो, ए सहु मिथ्याधंध. ३९४ को कर्त्ता भोक्ता अहो, सहुथी अवळो न्याय नित्य आतमा मानतां, कर्ता भोक्ता थाय. ३९५ अभ्रसंग दूरे थतां, निर्मलरवि प्रकाश; नित्य आतमा मानतां, होवे दोष विनाश. जेनी संयोगे करी, उत्पत्ति नहीं थाय; नाश होय नहि तेहनो, माटे नित्य सदाय. ३९७ अहंकृतिने क्रोधनी, केशरी फणिधरमांय; भासे तरतमता घणी, पूर्ववासना त्यांय. पूर्ववासना योगथी, नित्य आतमा सिद्ध क्षणिकचेतन बुझिने, देशवटो एम दीध.
आशंका शिष्य उवाच. जीव न कर्ता कर्मनी, कर्मज कर्ता कर्म; चेतन. कर्ता कर्मनो, धर्म जीवनों मर्म. ४० सदा असंगी आतमा, जलपंकजनी पेर. काने भोकापणुं, भासे प्रकृति घेर, का
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