________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परमात्मदर्शन,
(१७९)
AAAAAAAAor
मानवा नहीं. तेमज जाति वा लिंग आश्रित धर्म मानवो नहीं, धम आत्मानो अने धर्मी आत्मा अरूपी छे अने ते देह तथा जातिथी भिम समजवो. ए ज परमार्थ. कुलाचारनी रीतमां, जे माने मन धर्म; धर्भ मर्म समजे नहीं, ले नहीं शाश्वत शर्म.१३०
भावार्थ-जे भव्यो अज्ञानदशाथी पोताना कूलना आचारमां धर्म मानेछे ते धर्म मर्म समजता नथ्री. अने धर्मज्ञानना अमावे शाश्वत शर्म पामी शकता नथी. कुलाचारनी प्रवृत्ति दरेकनी भिन्न भिम होयछे, अने ते प्रमाणे सर्व मनुष्योनी प्रवृत्ति थया करेछे, ज्ञानी पुरुषो कूलाचारनी रीतिमां धर्म मानता नथी. मायः कूलाचारनी रीति जे देशमा जे धर्म चालतो होय तेनी मिश्रताथी थइ होय छे-जैनोनी कूलाचारनी रीति जैन धर्म फीलोसोफीथी मिश्रितछे, माटे जैनोनी कूलाचारनी रीतिमां धर्मना हेतुओमानो अंतर्भाव वर्ते छे. माटे तेनाथी विपरीत वर्तवू नहीं-बाल जीवोने कूलाचारनी रीति पण व्यवहारथी धर्म साधनमा कारणी भूतछे आ वचन बोलवामां दीर्घदृष्टिथी विचार करतां घणो उंडो परमार्थ समायोछे, ते अर्धदग्ध उपलक डोळ घालु जनोना जाणवामां आवशे नहीं, जैन धर्मनी सत्यताथी ते धर्म जे लोको आचरेछे तेनी कूलाचारनी रीति पण धर्मकारणमिश्रित होयछे, माटे श्रावकना कूलाचारे पण जे धर्मनी श्रद्रा-आचार ते श्रेयस्कर छे, जेम कोइ कूवामा पाणी (जल) ना होय अर्थात् मुकाइ गयुं होय तो पण ते खोदवा गाळवाथी जलनी सेरो फूटी कूवामां पाणि नीकळशे,-तेम जैन धर्म पण कूलाचारथी पाळतां ज्ञानीगुरुनो संग थतां तेनुं रहस्य समजाता-समकीतनी माप्ति थशे, माटे समजु भव्यजनाए आ बाबतने। विचार करवो-हालनो समय प्रथमना जेवो नथी, माटे जैनीओए
For Private And Personal Use Only