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परमात्मदर्शन.
AANANA
णनी क्रिया पोत करे तो ते क्रियाथी प्राणनाशरूप यतुं फल पण पोते भोगवेछे. हवे कहो के तेमां न्याय कर्ता कोण इश्वर वा क्रियानो कती, इश्वरे मनुष्यना प्राणनो नाश कर्यो वा तालपुट विषे प्राणनो नाश कर्यो. अलबत कहेवू पडशे के विषमांज एवी शक्ति रहीछे के ते प्राणनो नाश करेछे, प्रत्यक्ष ते सिध्ध वातछे. इश्वर न्याय करेछे एम मानवू ते केवल मृषा, प्रमाणविरूध्ध कल्पना मात्रछे, निरंजन निराकार इश्वर सिध्धात्माने शुं प्रयोजन छे के कर्मना फलोदयने भोगवावे.
वळी ते उपर बे विकल्प करीएछीए के कर्म पोते फल आपवामां स्वतंत्रछे के परतंत्र प्रथम पक्षमा कर्म पोतेज सारू वा खोटुं आपवामां स्वतंत्रछे. एम स्वीकारतां इश्वर जीवोने कर्याकर्म प्रमाणे न्याय आपेछे ते वात खोटी आकाश कुसुमवत् ठरी. कर्ममां ज सारूं वा नठारुं फल आपवानी शक्ति रहीछे तो ते प्रमाणे कर्मथी सुख दुःख फल मळशे. पोतानी मळे जेम षुरूषनुं वीर्य अने स्त्रीनु रेतस् ए बेन संयोगमांग उत्पन्न करवानी शक्ति रहीछे तथा जेम आमेमां स्वाभाविक दाहक शक्ति रहीछे तेथी अमिनो अंगारो हाथमा लइएतो पोतानी मेळे हाथ बळे, हाथने बाळवामां दाहकत्त्वरूप न्याय पोते करेछे. तेमां इश्वर कंइ न्याय करतो नथी. सेम कर्म पोते स्वतंत्र रीत्या फल आपवा समर्थछे. त्यां इश्वरने न्याय कर्ता मानवो केवल नमणा अने अज्ञान अने मिथ्यात्व समजवु. कर्ममांज शातावा अशातारूप फल आपवानी शक्ति छे एम सत्य छ, अने एम ज्ञान दृष्टिथी देखायछे. सर्वज्ञने . असत्य वदवानुं कंइ कारण नथी हवे बीजो पक्ष लइए, कर्म फल आपवामां परतंत्र छे एटले ते इश्वरना ताबामांछे. इश्वरनी इच्छा प्रमाणे कर्म फल आपी शकेछे एम मानीएतो इश्वर अन्यायी प्रपंची दयाहीन उरेछ:
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