Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परमात्मन.
nidinannininnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnanimam
निजगुण स्थिरता चरणथी, थाता गुण उद्यौता स्वयंशुद्ध परमातमा, प्रगटे निर्मल ज्योत. ३४० गुणस्थानक स्पर्शन थतां, सहजे गुण प्रगटाय. परिपूर्ण निजव्यक्तिथी, अविचलपदवी पाय. ३४१ षट्स्थानक अवबोधथी, समकित प्रगटे चंग; पदस्थानक धारो सदा, गुण प्रगट निज भंग. ३४५ अस्ति चेतनद्रव्यनी, चेतनद्रव्य अनन्त संसारीने सिद्ध दोय, ज्ञानी एम वदन्त. ३४३ नित्यज चेतन द्रव्यछे. कर्ता हर्ता जोय; कर्मथकी मूकाय शिव, तेनां कारण होय. ३४४
शिष्य उवाच नथी दृश्य ते दृष्टिथी, स्पर्शे प्रह्यो न जाय; आत्मद्रव्यनी अस्तिता, अनुभवे न जणाय. ३४५ मानो देहज आतमा, अथवा श्वासोश्वास. पंचतत्त्वनुं पूतळु, अन्य कयो आभास ? ६५ घटपट यथा जणायछे. तथा न चेतनद्रव्य, माटे चेतन नास्तिता, मिथ्या माने भव्य. यदि नथीजो आतमा, तपजप संयम फोक पुण्यपापनी कल्पना, भूले भोळा लोक. ३५०
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432