Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 396
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org परमात्म Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only (३०५ ) परद्रव्य परक्षेत्रथी, परकालज परभाव; नास्तिता तेनी सदा, निजमां वर्ते दाव. ग्रही अपेक्षा परतणी, घटे नास्तिता आयः परभावे षद्रव्यमां, नास्तित्व स्थिरताय. परद्रव्योनी, अस्तिता, तेज नास्तिता रूप; प्रणमे निजनिज द्रव्यमां, सापेक्षाए अनुप. पूछे पृच्छक अत्र एम, घटे न वे एक ठाम; तमः तेज प्रतिपक्षिनुं, घटे नं एकज धाम नैकस्मिन् ए सूत्रथी, रहे न वे एकत्र; अस्ति नास्ति एकत्र नदि, भाखो सद्गुरु अत्र ३२४ सापेक्षा सदु घटे, तथा सर्व समजाय; पिता पुत्रत्व एकमां, बन्ने धर्म सुहाय. चेतननुं अस्तित्वते, परमां नास्ति स्वरूप; परमां नास्ति नहीं रहे, विघटे वस्तु अनूप विना अपेक्षा अस्तिता, नास्तिता नहीं जोय; नैकस्मिन् ऐ सूत्रतो, स्याद्वादे अवलोय जे समयेछे अस्तिता, नास्तिपणुं ते काल; एकसमयमा वर्तना, षड्व्योमां भालअस्ति नास्ति त्रीजो को भंग समय सिरताज षद्रव्योमां व्यापियो, जिनदर्शन साम्राज्य ३२६* ३२८ ३२९ ३२० ३२१ ३२२ ३२३ ३२५ -३२७

Loading...

Page Navigation
1 ... 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432