Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 397
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अस्ति शब्द उच्चारता, समयो बहे असंख्या नास्ति शब्दोचास्मां, तथा कहे भगवंत. ३३० एकज समये अवाच्यछे, कदी न कोइ कहत अवक्तव्यज भंगछे, चोथो सूत्रे लहंत ३३१ अस्तिधर्म अनन्तछेज, वाणी अगोचर थाय; पबमभंग ते उपजे, अनेकान्त शोभायः ३३२ नास्तिधर्म अनन्तता, वस्तुमध्ये रईत; भवाच्य वाणीथी कंह्यो, छटो भंग कहत. ३३३ अस्तिनास्ति बे छे सदा, अवक्तव्य ते होय; सप्तमभंगज सर्वमां, समय समय अवलोय. ३.३४ गुरुगमज्ञानअवाप्तिथी, भंगज सप्त स्वरूप; जाणी आत्मस्वभावमां, अपहरीए भवधूप. ३३५ अतिगहनछे तत्वबोध, विरलाजन समजंत; सजन भवसागर तरे, करी कर्मनो अन्त. ३३६ सप्तभंगीछे सिद्धमां, अनन्तगुणमां जोय; अनेकान्तनय जाणतां, शुद्धं समाकित होय. ३३७ नवतत्त्व षड्व्य नु, सत्यज्ञान जो थाय; तो जाणो ज्ञानिपणं, सहेजे शिवपद पाय. ३३८ समकितादि मोहिनी, तेनो उपशम भाव; क्षयोपशम क्षायिकपणे, प्रगटे समकितदाव. ३३९ For Private And Personal Use Only

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