Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 395
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३८४ ) अस्ति नास्तिस्वरूप. स्वद्रव्य स्वक्षेत्री, निजकाले निजभाव; अस्तित्व बहु भंगथी, निजद्रव्ये चित्त लाव. ३११ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir in जीवादिक नवतत्वमां, प्रथमज अस्तिहिभंग; कदी नदि जे वस्तु जग, प्रगटे नहि धरि अंग. ३१२ धर्माधर्माकाशकाल, पुद्गल पंचम जोय; जीवद्रव्य छटुं कां, अस्ति भंग अवलोय. www भूत भविष्यत् संप्रति, त्रिकाले वर्तायः द्रव्योम जाणिये, अस्तिभंग स्थिरताय - ३१४ समये समये अस्तिता, अनंतगुणनी जाण; चेतनद्रव्ये वर्तती, सिद्धान्ते व्याख्यान. पुद्गलना पर्याय जे, घटपटरूपे लेख: तदाकारछे अस्तिता, सादि सान्तथी देख ३१३ For Private And Personal Use Only द्रव्ये द्रव्ये अस्तिता, भिन्न भिन्न कहेवाय; द्रव्यज गुण पर्यायनी, अस्तिताज निजमांय. ३१६ ३१५ ३१७ द्रव्यार्थिक नय जाणिये, अनाद्यनंतज भंग; पुद्गलमां व्यापी रह्यो, सादिसान्त गुण चंग. ३१८ स्यान्नास्ति बीजो कहुं, भंग अति सुखकार; षद्रव्योमां व्यापियो, सापेक्षाये धार. ३१९

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