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परमात्मदर्शन.
करवु श्रेयस्करछे. आत्मज्ञान विना कोइ तर्या नथी अने तरंश पंग नहीं, राजा, करोडाधिपति, आदि सर्व करतां ज्ञानीनी महत्वताछे. ज्ञानी सूर्य करतो पण मोटोछे. कारण के सूर्य बाह्य प्रकाश करेंछ किंतु अंतर्मकाश करी शकतो नथी. अने ज्ञानी तो अंतर्मकाश करे छे. ज्ञानीनी सर्व क्रिया, वर्तन सापेक्षपणे वर्ते छे. अने अज्ञानीखें वर्तन निरपेक्षतया वर्तेछे. ज्ञानी अवश्य चोथाठाणे गणे तो होयछे अने अज्ञानी बी. ए. एल. एल. बी आदि पद्विओथी दुनीयादारीमा महा विद्वान् कहेवातो होय तो पण समकित विना पहेले गुणगणे पर्ने छे. ज्ञानावरणीय कर्मना क्षयोपशमभावथी वा क्षायिकभावथी शाननो आविर्भाव थाय छे. सम्यकतत्त्व श्रद्धान् विना ज्ञानावरणीय कर्मनो क्षयोपशमभाव पण मिथ्यात्वरूपे परिणमेछे. एम श्रीवीर प्रमुनु कथनछे, ____ ज्ञानावरणीय कर्म पंचप्रकारेछ-मतिज्ञानावरणीय कर्म १, श्रुतज्ञानावरणीय कर्म २, अवधि ज्ञानावरणीय कर्म ३, मनःपर्यव ज्ञानावरणीय कर्म ४, केवल ज्ञानावरणीय कर्म ५. ___ज्ञानावरणीय कर्ममा उपशम भाव नथी. ज्ञानावरणीय कर्मनो
औदायिकभावछे. ज्ञानावरणीय कर्मनो क्षयोपशम विचित्र असंख्य प्रकारे तरतमयोगथी वर्तेछे. द्वादशांगीनुं गुंथन गणधरजी क्षयोपशमभावे करेछे.
मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञानमा क्षयोपशम भाव लाभेछे. केवलझान क्षायिकभावे उत्पन्न थायछे. ज्ञानावरणीय कर्म अष्ट कर्ममा प्रथम छे. तेनुं कारण के विशेषतः ज्ञानावरणीय कर्म आत्मानुं भान भूलवेछे. ज्ञान विना तत्त्व- भान यतुं नयी. माटे प्रथम तेनो निक्षेप कर्योछे. ज्ञान विना जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रय, संवर, निर्जरा, बंध अने मोक्षनु स्वरूप जणातुं नथी,
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