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(२०) ईश्वर कर्तृत्ववाद निराकरण पण देहमा रहेछे पण पंचभूतथी भिन्नछे. जड अने चेतन एबे वस्तु आ प्रमाणे विचारतां अनादिकालथी छे एम सिद्ध थायछे. जीव अने. जडनी परस्पर शक्तियो पण भिन्नछे. जडवस्तुमा चेतन कर्मनावशे परिणमेछे ते व्यवहारनयथी जाणवू. निश्चयथी जडमां चेतन परिणमतो. नथी, आ प्रमाणे अनेकान्तनयज्ञान थया विना तत्त्वजें यथार्थ भासन थतुं नथी.
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल अने जीव एम षड्द्रव्यथी जगत् कहेवायछे. अनादिकालथी षद्रव्यछे. ते षड्द्रव्य, द्रव्यार्थिकनयथी नित्यछे अने पर्यायाथिकनयथी अनित्यछे. ते षड्द्रव्यथी भिन्न कोइ वस्तु नथी. तो षड्द्रव्यनो कर्त्ता ईश्वर केम मानी शकाय. अर्थात् न मानी शकाय. हवे के विकल्प करवामां आवेछे. जगत्कर्तृत्व शक्ति ईश्वरमां नित्य छे के अनित्यछे ? जगत्कर्तृत शक्ति नित्य मानवामां आवे तो ईश्वर सदाकाल जगत् बनान्या करशे. एवं महादोष आवेछे, तेमज जगत्कर्टल शक्ति अनित्य मानवामां आवे तो जगतत्व शक्ति क्षणमा अनित्य होवाथी विणशी जतां सृष्टि पण क्षणमां नाश पामी जाय. पण तेम प्रत्यक्ष अनुभव विरूद्धछे मोटे बे पक्षथी ईश्वरशक्ति जगत् कर्तृत्वमा सिद्ध थती नथी. एम नित्यानित्य पक्षथी ईश्वरशक्ति
दूर थायछे.
जगत् कर्ता ईश्वरने साकारी मानवामां आवे तो अनेकदोषो उत्पन्न थायछे. साकार ईश्वर एकदेशावस्थित होवायी सर्वत्र सृष्टि पनावी शके नहीं साकारकुंभकारवत् साकारकुंभकारनी पेठे कर्म विना देह होय नहीं. अने देहवडे ईश्वर साकार देवतानी पेठे कहेनाय तो कर्म सहित ठो. सकर्माईश्वर ठरवाथी अन्य जीवोनी पेठे कर्मना परतंत्र रखो, अने स्वतंत्र थयो नहीं. त्यारे ते जगत् बनाव
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