Book Title: Parmatma Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 385
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ~~ ~~~~ ~ ~ ( ३७४) भावमा वर्तेछे. परभावमां न्याय माटे पण प्रवर्तती नथी. सोऽहं सोऽहं पद प्राप्त कर्यु तेने हुं प्रणाम करु . परमात्मपदने सोऽहंपद कहेछे. सोऽहंपदनुं ध्यान धर्यायी परमात्मपद मळेछे. जे जे जीवो कर्मनो नाश करेछे ते ते जीवो परमात्माओ थायछे. सिद्धस्थानमा एक सिद्धछे तेम अनेक सिद्ध परमात्माओछे. संपूर्ण कर्मक्षयथी मुक्तिस्थानमा सर्वे सिद्धात्माओ समानछे. ज्ञाननी अपेक्षाए व्यापकछे असंख्य प्रदेशरूप व्यक्तिनी अपेक्षाए व्याप्यछे. शंकराचार्य तथा उपनिषदोनी केटलीक अपेक्षाए आत्मानुं व्यापकपणुं जैनमत अंगीकार करेछे. तेमज रामानुजमतापेक्षाए आत्मानुं व्याप्यपणुं पण जैनमतमा समाइ जायछे. व्यक्तिनी अपेक्षाए सिद्धात्माओ भिन्न भिन्न छे अने ज्ञानादिक गुणनी अपेक्षाए एकरूप (एक) छे. जे सिद्ध परमात्माओने रागद्वेष नथी. परभावमा रमण करता नथी. आत्माना ज्ञानादिक अनन्त गुणमा जे समये समये रम्या करेछे. एवा परमप्रभुना ध्यानथी आत्मा पण परमात्मा थायछे. ध्याता ध्येयना ध्याने स्वशुद्ध ध्येयरूप प्राप्त करेछे. परमशुद्धपरमात्माने वारंवार नमस्कार करु . परमात्माना सम्यग्ज्ञानथी अज्ञानादि दुःखनो नाश थायछे. सम्यग् ज्ञानथी सहज शुद्ध स्वरूप मय चिदानन्द समुद्रनी ल्हेरो प्रगटेछे. सम्यग् ज्ञान क्रियाथी मुक्ति परोक्ष नथी. अर्थात् मुक्ति प्रत्यक्षछे. मुक्तदशा जे जे अंशे थायछे ते ते अंशे मुक्तिनां सुख प्रगटेछे. केटलाक अद्वैतवादियो अद्वैतवादनुं गुरुगम यथार्थ स्वरूप न समजवाथी ब्रह्ममाथी सृष्टि उत्पन्न थइछे अने ब्रह्ममा समाइ जायछे, इत्यादि एकांतवाद स्वीकारीने भूल करेछे. जैनदर्शन अपेक्षाए. अद्वैतब्रह्मवाद स्वीकारेछे पण जे नयोनी सापेक्षा विना ब्रह्म मानी भूलो साये करेछे ते संबंधी कंइक कहेवामां आवेछे. For Private And Personal Use Only

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